पौधे की कलम

कैसे लगाई जाती है फलदार पौधों की कलम

खेती में बदल रहे समीकरण अनुसार पंजाब में गेहूं, धान के नीचे के रकबे को कम करके फलों का रकबा बढ़ाना समय की मुख्य जरूरत है। इसलिए फलों की उपयुक्त किस्मों की रोग रहित पौध तैयार करना बहुत ही ज़रूरी है। फलों की औसतन पैदावार कम होने का मुख्य कारण बीमारी रहित, सेहतमंद फलदार पौधों की अनुपस्थिति है। नौजवान ट्रेनिंग लेकर फूलों की सेहतमंद पौध तैयार करने को एक व्यवसाय के तौरपर भी अपना सकते हैं।

फलदार पौधों की नस्ली वृद्धि करने के मुख्य पांच ढंग हैं:

  • बीज द्वारा
  • कलमों द्वारा
  • दाब द्वारा
  • आँख चढ़ाकर
  • ग्राफटिंग द्वारा

बीज द्वारा: फलदार पौधे जैसे कि पपीता, फालसा और जामुन की जिन्सी वृद्धि बीज द्वारा ही की जाती है। बीज से तैयार किये पौधों को भले ही बीमारी कम लगती है पर फल की गुणवत्ता और उपज पर बुरा असर पड़ता है। पर जड़ तैयार करने का सबसे बढ़िया तरीका बीज द्वारा है। बीज को बिजाई से पहले 3.0 ग्राम कैप्टान प्रति किलो बीज के हिसाब से उपचार कर लें। पपीते की पनीरी जुलाई के दूसरे सप्ताह से सितंबर के तीसरे सप्ताह 25 से 10 सेंटीमीटर आकार के प्लास्टिक के लिफाफों में तैयार की जाती है। इन लिफाफों में 8-10 छेद किये जाते हैं ताकि फ़ालतू पानी बाहर निकल आये। लिफाफों को रूडी की खाद, मिटटी और रेत की बराबर मात्रा में मिलाकर भर लें।

कलमों द्वारा: अंगूर और अनार की नस्ली वृद्धि कलमों द्वारा की जाती है। कलम 15-20 सेंटीमीटर लंबी एक साल पुरानी टहनी जो पेंसिल की मोटाई की हो और 3-5 आँखों वाली बनानी चाहिए। कलम का उपरला कट तिरछा और नीचे का कट गोल होना चाहिए। कलम का एक तिहाई हिस्सा ज़मीन से ऊपर होना चाहिए और बाकि ज़मीन के नीचे। एक साल में पौधा खेत में लगाने के तैयार हो जाता है।

अतिरिक्त दाब /गुट्टी: इस ढंग से लीची की वृद्धि की जा सकती है। एक साल पुरानी टहनी के ऊपर के किनारे से एक फ़ीट पीछे को 2.5 सेंटीमीटर गोलाई में छाल उतार दी जाती है। इस हिस्से को सफैगनम घास से ढक कर पॉलीथीन में लपेटकर किनारों (पक्षों) से कसकर बाँध दिया जाता है। 3-4 सप्ताह के बाद कटे हिस्से से जड़ें निकल आती हैं। इस टहनी को पौधे से अलग करके नर्सरी में लगा दिया जाता है। बारामासी नींबू के पौधे भी इस विधि द्वारा तैयार किये जाते हैं।

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