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धान में कैसे करें बीमारियों की पहचान

यह समय धान की फसल के लिए बहुत नाजुक होता है, इस समय धान निसरना शुरू करता है और अधिक बीमारी का हमला होने का यह अनुकूल समय होता है, धान में इस समय बीमारियों और कीट का सर्वेक्षण करना बहुत ज़रूरी है और इसके लक्षण द्वारा बीमारी की पहचान और रोकथाम दोनों ही समय पर करने चाहिए। बीमारियां और उसके लक्षण निम्न दिए गए हैं।

 

धान की बालियां कुतरने वाली सूंडी

इस कीट की सूंडी झुण्ड में होती है जिसके कारण इन्हें सैनिक सूंडी भी कहा जाता है। छोटी सूंडी पौधे के पत्ते खा जाती है और पीछे बीच वाली नाड और तने रह जाते हैं। बड़ी सूंडी मूंजर की डंडी काट देती है जिसके कारण इन्हें धान की बालियां कुतरने वाली सूंडी कहा जाता है। इस अवस्था में यह सूंडी धान की फसल का बहुत नुक्सान करती है। सितम्बर से नवंबर तक फसल का बहुत नुक्सान होता है।

 

जड़ की सूंडी

इसका हमला राजपुरे के इलाके के आस-पास बहुत होता है पर यह कीट प्रांत के ओर इलाकों में भी देखने में आया है। इस सूंडी की टांगे नहीं होती। इसका रंग सफेद होता है। यह सूंडी जुलाई से सितम्बर तक ज़मीन में पौधे की जड़ को खा जाती है और हमले वाले पौधे छोटे रह जाते हैं, पीले पड़ जाते हैं और पूरा जाड़ नहीं मारते।

 

झूठी कांगियारी

इस बीमारी के साथ दाने की जगह पीले से हरे रंग की धूडेधार उल्ली के गोले बन जाते हैं। यदि फसल के निसरने के समय बारिश, बादल और अधिक नमी रहे तो यह बीमारी अधिक लगती है। रूडी और नाइट्रोजन वाली खादों का अधिक प्रयोग करने से भी इस बीमारी का विकास होता है।

इस पर नियंत्रण के लिए जब फसल गोभ में हो 400ml गैलीलियो वेअ 18.76 SC (पीकोक्सिसट्रॉबिन +प्रोपिकोनाज़ोल) या 500gm कोसाइड 46 DF (कॉपर हाइड्रोक्साइड) को 200 लीटर पानी में घोल कर प्रति एकड़ छिड़काव करें।

 

भूरे धब्बे के रोग

इसके साथ गोल, आँख जैसे धब्बे पड़ जाते हैं जोकि बीच से गहरे भूरे और बाहर से हल्के भूरे रंग के होते हैं। यह धब्बे दाने पर भी पड़ जाते हैं। यह बीमारी कमजोर ज़मीनों में फसल में सूखा पड़ने से अधिक आती है। इसलिए फसल को संतुलित खाद डालनी चाहिए।

इस रोग की रोकथाम के लिए nativo 75WG (trifloxystrobin + tebuconazole) 80gm प्रति एकड़ 200 लीटर पानी में घोल कर दो बार छिड़काव करें। पहला छिड़काव जाड़ मारने के समय और दूसरा छिड़काव 15 दिन के बाद।

 

भुरड़ रोग

पत्ते पर स्लेटी रंग के धब्बे पड़ जाते हैं जोकि किनारे से भूरे रंग के होते हैं। इससे मूंजर की जड़ पर काले दाग पड़ जाते हैं और मूंजर नीचे की तरफ झुक जाती है। यह बीमारी का हमला बासमती पर खासतौर पर जहां नाइट्रोजन खाद का अधिक प्रयोग किया हो वहां होता है।

इसकी रोकथाम के लिए 200ml amistar Top 325 SC (azoxystrobin +Difenoconazole) या 500gm इंडोफिल Z 78, 75WP (Zineb) को 200 लीटर पानी प्रति एकड़ में घोल कर फसल के गोभ में आने और मूंजर निकलने के शुरू में छिड़काव करें।

 

बंट (भूनट)

इस बीमारी के कारण बालियों में कुछ दानों पर असर होता है। आमतौर पर दाने का कुछ भाग काले पाउडर में बदल जाता है। कई बार पूरा दाना ही काला पाउडर बन जाता है और यह काला मादा दूसरे दाने और पत्तों पर बिखर जाता है। नाइट्रोजन की अधिक मात्रा प्रयोग करने से संकोच करें।

 

तने के आस पास पत्तों का गलना

तने के आस-पास पत्ते गलने के रोग सबसे ऊपरी पत्ते की शीथ (पत्ते का वह भाग जो तने के साथ लिपटा होता है) के गलने के कारण होता है। इससे पत्तों की शीथ और लम्बूतरे से हल्के भूरे रंग के दाग पड़ जाते हैं। यह दाग आमतौर पर एक दूसरे के साथ मिलकर पत्ते के पूरी शीथ पर फैल जाते हैं।गंभीर हमलों के मामले में शीथ में नाजुक कुंबले निकलती ही नहीं या आधी ही निकलती है। नई अंकुरण हो रही कुंबले पर सफेद रंग की धुड़े जैसी उल्ली पैदा हो जाती है। इस रोग के साथ मूंजर थोथी रह जाती है और गहरे लाल या जामनी भूरे से काले रंग की हो जाती है। यह उल्ली सर्दी के दिन में दाने और पराली पर रहती है। जिस पर इसका अधिक हमला हो उसकी पराली, दाने झाड़ने के बाद खत्म कर देनी चाहिए। बीमारी रहित बीज का प्रयोग करने की सिफारिश की जाती है।

इस बीमारी पर नियंत्रण डालने के लिए 26.8gm प्रति एकड़ एपिक 75WG (हेक्साकोनाज़ोल) को 200 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करें। पहला छिड़काव जब फसल गोभ में हो, उस समय करें। दूसरा छिड़काव 15 दिनों के अंतराल पर करें।

यह थी धान की इस समय बीमारियों और कीट के हमले के लक्षण, इसके बारे में ओर जानकारी के लिए और माहिरों से सलाह के लिए डाउनलोड करें अपनी खेती एप

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