जैविक खेती

जैविक खेती कैसे है किसानों के लिए फायदेमंद

उत्तरी भारत और खास तौर पर पंजाब में साठवें दशक में आये गेहूं और धान के नए बीजों और रासायनिक खादों और सिंचाई साधनों के विकास के कारण फसलों की उपज के साथ हुए गजब की वृद्धि को हरी क्रान्ति के नाम से सम्मानित किया। हरी क्रांति के साथ जहाँ अनाज में वृद्धि हुई वहीँ कई मुश्किलों ने जन्म लिया। रासायनिक खादों और कीटनाशकों की ज़रूरत से अधिक प्रयोग, देसी खादों का प्रयोग प्रति लापरवाही और धान और गेहूं की पराली को जलाना आदि ने हमारे वातावरण और ज़मीन के स्वस्थ्य पर बुरा प्रभाव डाला।

अनावश्यक और असामयिक प्रयोग की खादों ने अधिक खर्च के साथ वातावरण पर भी बुरा प्रभाव डाला। आधुनिक खेती के वातावरण पर बुरे प्रभाव के प्रति जागरूकता और जैविक भोजन की मांग ने जैविक खेती की लहर को जन्म दिया।

 

जैविक खेती क्या है ?

जैविक खेती एक ऐसी तकनीक है जिसमें खेत में किसी भी तरह के रसायन का प्रयोग नहीं किया जाता बल्कि हमारे खेतों के अपशिष्ट पदार्थ को प्रयोग करके खेती कर सकते हैं। जैविक खेती में पशुओं के गोबर और पिशाब आधारित (रूडी की खाद, नाडेप खाद और केंचुए खाद आदि) और तरल खाद (वर्मीवाश) के प्रयोग से ज़मीन और फसलों को तंदरुस्त रखा जा सकता है। ज़मीन के स्वस्थ्य को बनाई रखने बल्कि तंदरुस्त रखने के लिए रासायनिक खादों को छोड़कर हर तरह के खेतो स्रोत और खेती के तरीके एक संगठित तौरपर उपयोग किए जाते हैं। पौधे ज़मीन में से नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश तत्व को रासायनिक तत्व के तौरपर ही लेते हैं।

 

फसल को खुराकी तत्वों की बहुत ज़रूरत होती है जैसे मनुष्य को रोटी की। फसल में इन तत्वों की कमी को पूरा करने के लिए नीचे दिए गए पदार्थ प्रयोग किये जाते हैं।

  • वर्मी कम्पोस्ट या वर्मीवाश: यह केंचुओं से तैयार की जाती है जिसे फसल की बिजाई से पहले खेत में डाला जाता है।
  • मटका खाद: इसे बनाने के लिए 15 किलो गाय का गोबर और 15 लीटर पिशाब, 15 लीटर पानी और 250 ग्राम गुड़ को एक घड़े में मिलाकर इसे कपडे या बोरी के साथ ढक दें। इसे 4-5 दिन के लिए रख दें। इसमें 200 लीटर पानी मिलाकर एक एकड़ फसल पर 2 या 3 छिड़काव किये जाते हैं।
  • जीव अमृत: इसे तैयार करने के लिए प्लास्टिक के ड्रम में 200 लीटर पानी में 10 किलो देसी गाय का गोबर, 10 लीटर देसी गाय का पिशाब, 2 किलो गुड़, 2 किलो किसी भी दाल का आटा और 1/2 किलो मिट्टी में मिला लें। मिट्टी नहर के किनारे या किसी ऐसी जगह से लेनी है जहाँ खेती रसायनों का प्रयोग ना होता हो। इसे 5-7 दिनों के लिए बोरी में ढककर रख दीजिये। इस घोल को दिन में 3 बार हिलाएं। इसे एक एकड़ में सिंचाई के पानी के साथ फसल पर प्रयोग कर सकते हैं।
  • पाथियों का पानी: 15 किलो एक साल पुरानी पाथियों को 50 लीटर पानी में डालकर 4 दिनों के लिए छाया में रखें। इस पानी को 2 लीटर प्रति पंप फसल ऊपर छिड़काव किया जाता है।
  • रूडी की खाद: 50 किलो रूडी की खाद में एक किलो ट्राईकोडर्मा मिलाकर इसे बिजाई से पहले खेत में डालें। इसके साथ फसल को सभी ज़रूरी तत्व मिल जाते हैं।
 

इसी तरह यदि फसल में कीटों की रोकथाम की बात करें तो उसके लिए नीचे दिए तरीके प्रयोग किये जा सकते हैं।

  • नीम और अक का अर्क: ड्रम में 200 लीटर गाय का मूत्र लें और इसे 5-5 किलो नीम और अक के पत्ते डाल दें। इस मिश्रण को सुबह शाम हिलाते रहें, 10 दिनों के लिए रखें। इस मिश्रण का पानी में 1:14 के अनुपात में फसलों पर छिड़काव किया जाता है।
  • हींग: रस चूसने वाले कीट की रोकथाम के लिए 4 लीटर गाय के मूत्र और 10 ग्राम हींग को 10 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।

ऊपर दिए सभी ढंगों से यह साबित होता है कि किसान जैविक खाद के कारण मेहंगी खाद और स्प्रे के खर्च से बच सकते हैं। उन्हें ज़रूरत है थोड़ी मेहनत की जो वह नहीं करते, जल्दी परिणाम के चक्र में रासायनिक खाद का प्रयोग कर लेते हैं।

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