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पक्षियों के नुक्सान से कैसे करें बचाव

पंजाब में मिलने वाले 300 किस्म के पक्षियों में से कुछ ही फसलों और फलों का और गोदामों, शैलरों और मंडियों में दाने को नुक्सान करते हैं। इस ब्लॉग के ज़रिये जानें कि कैसे इन पक्षियों से फसल का बचाव किया जा सकता है। तोता सबसे ज्यादा हानिकारक पक्षी है जो तकरीबन सभी फसलों और फलों को नुक्सान करता है। इसके साथ पैदावार के ऊपर भी असर पड़ता है। यह सूरजमुखी के लिए खास तौरपर हानिकारक है। इन पक्षियों से बचाव के लिए अलग अलग तरीके का प्रयोग किया जाता है जिससे फसल और पक्षियों दोनों को नुक्सान से बचाया जा सकता है।

हानिकारक पक्षियों से बचाव के तरीके:

 

1) यांत्रिक विधि

यह विधि बहुत सफल साबित होती है इसके साथ आसानी से पक्षियों को खेत में से निकाला जा सकता है, जिसमे पटाके और बिजूका का प्रयोग किया जाता है।

पटाके के धमाके अलग अलग अंतराल पर पक्षियों को उड़ाने के लिए करें, बिजूका का प्रयोग बहुत पुराने समय से किया जा रहा है। एक पुरानी मिट्टी का घड़ा आदि लेकर उसके ऊपर रंग के साथ मनुष्य का सिर (चेहरा) बना दिया जाता है और उसे खेत में डंडे के साथ खड़ा कर मनुष्य पोशाक पहना दी जाती है. बिजूका की जगह पर, दिशा और पोशाक 10 दिन के अंतराल पर बदल देनी चाहिए। बिजूका फसल की ऊंचाई से कम से कम एक मीटर ऊँचा होना चाहिए, पक्षी उड़ाने वाली मशीन का प्रयोग फसलों को पक्षियों से बचाने में सहायक होता है. अच्छे परिणाम लेने के लिए इस मशीन की जगह बदलती रहनी चाहिए।

 

2) पारंपरिक तरीके

सूरजमुखी और मक्की जैसे कीमती फसलों के आस पास बाहरी दो तीन लाइनों में कम कीमत वाली फसलें जैसे कि यंत्र या बाजरा जोकि पक्षियों द्वारा खाने के लिए पसंद किया जाता है खेत में बिजाई की गई फसलों को नुक्सान से बचा सकता है. मक्की और सूरजमुखी की बिजाई पक्षियों के बैठने वाली जगह या घने वृक्ष और फसल के ऊपर से निकलती बिजली की तारें आदि से दूर करनी चाहिए। सूरजमुखी और मक्की की फसल को तोते के नुक्सान से बचाने के लिए इनकी बिजाई बड़े रकबे (कम से कम 2 से 3 एकड़ ) में करनी चाहिए क्योंकि तोता फसल के अंदर जाकर नहीं खाता और फसल का नुक्सान भी कम होता है।

 

3) चेतावनी-आवाजें

तोते और कौआ की आवाजों और पक्षियों के झुण्ड की चहचहाहट CD में भरी हुई है। यह CD संचार केंद्र पंजाब खेतीबाड़ी यूनिवर्सिटी में उपलब्ध है। इनमें भरी आवाजों को CD प्लेयर में ऊंची आवाज में एक घंटे के अंतराल पर आधे आधे घंटे के लिए दो बार सुबह 7.00 से 9.00 बजे तक और शाम को 5.00 से 7.00 बजे के दौरान चलाने से नई बिजाई की गई फसल अंकुरित हो रही फसल या पक रही फसल वाले खेतों और बागों में से पक्षी पूरे दिन के लिए उड़ जाते हैं और फिर नहीं आते। पक्षियों के झुण्ड की चहचहाहट की आवाज को चलाने का असर 15 से 20 दिन तक रहता है। इस विधि को क्रम में या एक से अधिक तरीके के साथ एक विधि के अनुसार प्रयोग करने से अच्छे परिणाम हासिल किए जा सकते हैं।

शिकारी पक्षी, जैसे कि उल्लू, बाज, चील आदि बहुत मात्रा में चूहे खाते हैं और यह किसान के मित्र भी कहलाये जाते हैं।

 

लाभदायक पक्षी

प्राकृतिक में बहुत से पक्षी है जोकि किसानों की सहयता भी करते हैं जो फसल में लग रहे कीट को खा कर किसानों की सहायता करते हैं। कीड़े मकोड़े खाने वाले पक्षी जैसे कोतवाल, सरेड़िया, बुच्चड़ पक्षी टटिहरियां, गुटार और कई छोटे पक्षी अनगिनत (बहुत से) हानिकारक कीड़े मकोड़े को खा जाते हैं। यहां तक कि अनाज खाने वाली चिड़ियां और बिजडे जैसे पक्षी भी अपने बच्चों को बहुत से कीड़े मकोड़े खिलाते हैं।

चिड़ियों का एक जोड़ा एक दिन में लगभग 250 बार अपने बच्चों को दाना खिलाता है। इसलिए लाभदायक पक्षियों को मारना नहीं चाहिए। बल्कि उन्हें फसलों की तरफ कई तरीके से आकर्षित किया जा सकता है। पक्षियों को मारने के लिए किसी भी तरह की स्प्रे या ज़हरीले पदार्थ का प्रयोग न करें जिससे पक्षी का नुक्सान हो।

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