धान

धान की सीधी बिजाई के तरीके के लिए पूरी और सही जानकारी

पानी का प्रयोग और फसलों की खेती साथ साथ चलती है। वह तरीका जिसमें पानी की बचत होती है। उसे पहल देनी चाहिए, बस उसमें उपज की गुणवत्ता से कोई समझौता ना करना पड़े। यदि हम धान की फसल की बात करें तो धान की रोपाई के कारण ज़मीन बुरी तरह प्रभावित होती है, जिसके परिणाम स्वरूप ऊपरी ज़मीन और गेहूं की फसल को नुकसान होता है। धान की सीधी बिजाई से पनीरी और कद्दू करने का काम और मिट्टी का नुकसान कम हो जाता है साथ ही गेहूं—धान की खेती प्रणाली में स्थिरता आती है।

कद्दू करने के लिए काफी पानी की आवश्यकता होती है, पर जब पानी के स्त्रोतों में इसकी कमी हो तो मिट्टी की उपज और मिट्टी को नुकसान पहुंचाती है। धान की सीधी बिजाई से पनीरी बोने और पुटाई आदि कामों में मौसम के अनुसार लेबर की समस्या नहीं आती।

सीधी बिजाई से अतिरिक्त खादों और जहरीली दवाइयों से बचाव और बचत होगी। कद्दू और आर्द्रता ना होने के कारण भुरभुरी और हवादार रहती है। जड़ ज्यादा फैलती है।

सीधी बिजाई वाला तरीका धान और सर्दियों वाली फसलों को सफलतापूर्वक उगाने में सहायक है। कद्दू वाले खेत के मुकाबले सीधी बिजाई वाले खेत अधिक पानी बचाते हैं, क्योंकि इससे कोई दरार नहीं बनती। इससे ज़मीन की सतह पर बचे अवशेष मिट्टी की नमी को बरकरार रखते हैं, सर्दियों और गर्मियों में अनुकूल तापमान नदीनों की पैदावार पर रोक लगती है और मिट्टी में जैविक तत्वों की मात्रा बढ़ती है।

सीधी बिजाई के दो मुख्य तरीके

 

1. लक्की सीड ड्रिल से धान की सीधी बिजाई

  • धान की बिजाई मई के आखिरी सप्ताह से जून के दूसरे सप्ताह में हो सकती है और बासमती जून के दूसरे सप्ताह से आखिरी सप्ताह तक हो सकती है।
  • सीधी बिजाई के लिए धान की कम समय वाली किस्मों का पहल दें जैसे PR 126,128,129 और बासमती में 1509,1121,1718 आदि।
  • ड्रिल में डालने के लिए बीज की मात्रा 8—10 किलो है।
  • मिट्टी की किस्म— भारी और दरमियानी चिकनी ज़मीनें इसलिए बहुत अनुकूल हैं दोमट ज़मीन में सिफारिश नहीं है।
  • गेहूं की कटाई के बाद पानी देकर पिछले वर्ष वाला धान बीज/नदीन उग जाने दें ताकि बीच में ना मिलें। फिर ज़मीन की जोताई कर, धूप लगवाकर लेज़र लैवल करके क्यारे डालकर पानी लगाएं। फिर वत्तर ज़मीन में रोटावेटर/हल फेर कर दोहरा सुहागा मारकर वत्तर दबा लें। उसके तुरंत बाद ड्रिल से कतार से कतार बिजाई करते हुए सिरे के क्यारे से मोटर की ओर से बिजाई करते आएं।
  • लक्की सीड ड्रिल में लगे हुए 200 लीटर की टैंकी में प्रति एकड़ दो दवाइयां 1 लीटर स्टांप और 100 ग्राम साथी प्रति एकड़ में प्रयोग करनी है।
  • बीज बोने से पहले 8—10 घंटे दवाई कार्बेनडाज़िम स्ट्रैप्टोसाइक्लिन वाले पानी में डुबोना है और बाद में छांव में ही सुखाना है।
  • धान सातवें दिन बाहर निकल आएगा पर पहला पानी 18—21 दिन बाद ही हालातों के अनुसार लगाना है।
  • खाद चार किश्तों में 130 किलो डालनी है, डी ए पी की जरूरत नहीं है और जिंक या अन्य पोषक तत्व मिट्टी की रिपोर्ट के मुताबिक डालने हैं।
 

2. DSR ड्रिल से धान की सीधी बिजाई

DSR ड्रिल से बिजाई का तरीका उपर्युक्त तरीके की तरह ही है अंतर सिर्फ इतना ही है कि इस प्रक्रिया में आपको दवाई खुद ही स्प्रे करनी पड़ेगी। छिड़की हुई दवाई पर चलने से परहेज करना है।

खरीफ में भूमिगत पानी बनने और मॉनसून देर से आने के कारण, धान की रोपाई देर से और कड़ी मेहनत वाला काम बन जाती है। इसी कारण गेहूं की बिजाई भी उचित समय के बाद होती है। सीधी बिजाई वाला तरीका धान और अन्य सर्दियों वाली फसलों को सफलतापूर्वक उगाने में सहायक है। कद्दू वाले खेत की तुलना में सीधी बिजाई वाले खेत ज्यादा पानी बचाते हैं, क्योंकि इससे कोई दरार नहीं बनती। इससे ज़मीन की सतह पर बचे अवशेष मिट्टी की नमी को बरकरार रखती है, सर्दियों और गर्मियों में अनुकूल तापमान खरपतवारों की पैदावार पर रोक लगती है और मिट्टी में जैविक तत्वों की मात्रा बढ़ती है।

सीधी बिजाई के फायदे

  • इससे खेत में कद्दू करने और प्लो की जरूरत नहीं पड़ती और मिट्टी की गुणवत्ता भी बनी रहती है।
  • इससे फसल जल्दी तैयार होने में मदद मिलती है जिससे अगली फसलों में भी मदद मिलती है और सीधी बिजाई से फसल लगभग 10—15 दिन पहले तैयार हो जाती है।
  • इससे पानी की 35—40 प्रतिशत बचत होती है, लागत 3000 रूपये प्रति हेक्टेयर कम हो जाती है और उपज 10 प्रतिशत बढ़ जाता है।
  • यह ऊर्जा, बीज, तेल और लेबर की बचत करता है।
  • लेबर की कमी और मेहनत को कम करता है।

समस्याएं और हल

फसल को जरूरत पड़ने पर किसी भी कमी का हल स्प्रे के द्वारा  की जा सकती है। इसके बिना कई जैविक तरीके भी हैं जैसे ज़मीन की फंगस, फसल की फंगस, रस चूसक कीट और ग्रोथ के लिए वेस्ट डीकंपोज़र, ट्राईकोडरमा कल्चर, सूडो, फिटकड़ी, हींग, नीम, गुड़ जल अमृत, काला नमक का बढ़िया इस्तेमाल हो सकता है और फालतू के फंगसनाशी, कीटनाशी ज़हरों और ग्रोथ प्रमोटरों के महंगे प्रयोग से बचा जा सकता है।

 

निष्कर्ष

सीधी बिजाई के सिस्टम को जिसने समझ लिया और खरपतवार प्रबंध करने का तरीका सीख लिया उसे यह गेहूं बोने की तरह ही आसान और कम खर्चे वाली विधि लगेगी और लेबर से छुटकारा भी मिल जाएगा और तूड़ी बनाने के बाद आग लगाने की जरूरत भी नहीं पड़ेगी।

अपना पानी और साधन बचाना हमारी नैतिक ज़िम्मेदारी है।

अभी तक भी बहुत सारे किसान धान की सीधी बिजाई वाले तरीके को कुछ शक, जानकारी में कमी और पुरानी धारनाओं के कारण नहीं अपना रहे। यदि आपके दिमाग में भी धान की सीधी बिजाई या अन्य खेती संबंधित कोई सवाल है तो अपनी खेती वैबसाइट पर लॉग आन करें या एप डाउनलोड करें। अपनी खेती के प्लेटफॉर्म के द्वारा आप तज़ुर्बेकार और पढ़े—लिखे माहिरों की मदद से अपने सवालों के जवाब हासिल कर सकते हैं और खेती में सही रास्ते का चुनाव कर सकते हैं।

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