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फसलों में नदीन, कीट और रोग का कैसे किया जाता है प्रबंधन

जैविक खेती एक तरह के खेती वातारवण प्रणाली के निर्माण पर ज़ोर देती है। जिसे कीड़े, बीमारियां और नदीन आर्थिक कगार स्तर से नीचे रहते हैं। हानिकारक और उपयोगी जीव के बीच संतुलन, लाभकारी जीवों को पक्ष में रखा जाता है। जैविक खेती के तहत नदीन, कीट और रोग प्रबंधन जैविक फार्म के उचित डिज़ाइन और प्रबंधन द्वारा किया जाता है। इसमें किसी एक गैर रासायनिक तरीके को ना प्रयोग करके बहुत से गैर रासायनिक विकल्पों को इकठ्ठा करने की ज़रूरत पड़ती है।

कीट प्रबंधन – जैविक खेती तहत कीट प्रबंधन नीचे दिए ढंगों का इकट्ठा प्रयोग करके किया जा सकता है।

बचाव के ढंग – ज़मीन की स्तिथि को अनुकूल बनाने के लिए ज़मीन को खुराक दें न कि फसल को, के नियमों की पालना की जाती है ताकि पौधे तंदरुस्त हो और कीड़ों के हमलों का विरोध करें सहन करने में सक्षम हो। सिंचाई की अनुकूलता के द्वारा ज़मीन की उपयुक्त नमी बनाई जाती है। फसलों की पराली और अपशिष्ट का उचित निपटारा यकीनी बनाकर कीड़ों के व्यकल्पिक नदीनों को नष्ट किता जाता है।

खेती के तरीके – खेती की वृद्धि को आधुनिक ढंग प्रयोग किये जाते हैं ताकि कीड़ों के हमलों को कम किया जा सके। इन ढंगों का उद्देश्य कीड़ों के रहने के स्थान की अनुकूलता को कम करना है। फसल अनुसार नीचे लिखे खेती के तरीकों का प्रयोग किया जाता है।

फसल और किस्म का चयन – स्थानिक तौरपर अनुकूलित और कीट रोधक फसल और किस्म का चयन किया जाता है।

बीज – रोग रहित तंदरुस्त बीज का चयन किया जाता है।

बिजाई के ढंग – कीड़ों को कम करने के लिए फसल अनुसार बिजाई के उपयुक्त ढंग अपनाने चाहिए।

फसली चक्र – एक फसल से दूसरी फसल के कीड़ों को रोकने के लिए उपयुक्त फसल चक्र अपनाने चाहिए। उपयोगी जीवों को उत्शहित करने के लिए हरी खाद और ज़मीन को उपयुक्त फसली चक्र में शामिल किया जाता है।

अंतर और मिश्रित फसलें – अंतर और मिश्रित फसल प्रणाली अपनाने को पहल दी जाती है। मक्की में फलीदार फसल उगने से कीड़े कम आते हैं। मक्की के आस-पास नेपियर बाजरा और टमाटर के आस-पास गेंदा लगाने से इन फसलों के कीड़े के प्रबंधन में सहायता मिलती है।

बिजाई का समय – कीड़ों के लिए एक अनुचित वातावरण बनाने के लिए फसलों की बिजाई के समय संभव तब्दीली की जा सकती है। पिछेती तेले को फैलने से रोकती है और मूंगफली की पिछेती बिजाई सफेद सुंडी को फैलने से रोकती है।

लापरना – बासमती धान की अधिक कद वाली किस्मों को लापरन से बासमती के गिरने की समस्या के साथ-साथ तने की सुंडी का भी हमला कम होता है।

जोताई – कीड़ों के हमलों को कम करने के लिए खेत की गर्मियों की जोताई और गहरी जोताई आदि सहायक होती है।

पानी प्रबंधन – पानी प्रबंधन को कुछ कीड़ों की रोकथाम के साधन के तौरपर प्रयोग किया जाता है। धान में भूरे टिड्डे की रोकथाम के लिए पानी का निकास किया जाता है और फसल को दीमक से बचाने के लिए पानी लगाया जाता है।

कुदरत के दुश्मन – कीड़ों के कुदरती दुश्मनों की सुरक्षा और उत्शहित करने के लिए नकली ढांचे प्रदान किये जाते है जैसे कि भरींड और शिकारी पक्षियों के लिए घोंसले, खेत के आस-पास उनके रहने के लिए पौधे, मकड़ियों और अन्य कीड़ों को आकर्षित करने के लिए पौधे लगाए जाते हैं।

जैव विविधता – खेत पर जीवन के विभिन्न रूपों को बनाए रखने के लिए उनके आवास का प्रबंधन जैविक खेती का एक अनिवार्य हिस्सा है। इसे फली विविधता यकीनी बनाकर और जलवायु अनुकूलता के अनुसार कई किस्म के वृक्षों और झाड़ियों को लगाकर प्राप्त किया जा सकता है। यह कीट प्रबंध के लिए संतुलन प्रदान करने की भूमिका निभाती है। खेत पर जैव विविधता हर समय बनी रहनी चाहिए।

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