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कोरोना वायरस के दौरान तालाबंदी ( लॉकडाउन ) ने कृषि क्षेत्र को कैसे किया है प्रभावित

जब से लॉकडाउन शुरू हुआ है, भारत में ज़िंदगी रूक सी गई है। इसने ना सिर्फ प्राइवेट सैक्टर को प्रभावित किया, बल्कि आर्थिक्ता और सेवाओं के क्षेत्र में सार्वजनिक सैक्टर को भी प्रभावित किया है और यहां तक कि यदि कृषि क्षेत्र की भी बात करें तो यह भी नहीं बच सका। हर उद्योग को अपने दैनिक कामों को सही ढंग से पूरा करने के लिए कुशल कर्मचारियों की जरूरत होती है और कृषि क्षेत्र में इसकी सबसे अधिक महत्तता है, क्योंकि भारत में बहुत सारा काम हाथों से किया जाता है।

तो आइये शुरू करें और जानें कि कैसे वास्तव में लॉकडाउन के कारण खेती उत्पादन, भोजन सप्लाई और मंडीकरण स्थिरता पर बुरा प्रभाव पड़ा है।

कृषि समाज पर लॉकडाउन का प्रभाव

जब सरकार ने लॉकडाउन का ऐलान किया तो पूरे देश में मौजूद मजदूर कोरोना के डर से अपने घरों की तरफ मुड़ना चाहते थे। प्रदीप कुमार मजूमदार जो कि मुख्य मंत्री, पश्चिमी बंगाल के कृषि मंडीकरण क्षेत्र के मुख्य सलाहकार हैं, के अनुसार झारखंड और बिहार के ज्यादातर मजदूर अपने घरों को चले गए और पुटाई किए गए आलुओं की देख रेख के लिए मुश्किल से ही कोई मिलता था।

इसके अलावा मजदूरों की कमी के कारण कटाई वाली मशीनों, कंबाइन आदि रोड पर खाली खड़ी रही। खाद, बीज और किसानी जरूरत वाला सामान बेचने वाली दुकानें ज्यादातर बंद रहने के कारण, किसान भी गर्मी ऋतु वाली फसलें बोने से झिझक रहे हैं।

  • चीज़ों का परिवहन/सप्लाई लड़ी पर रोक

कोरोना वायरस लॉकडाउन ने माल के परिवहन को काफी हद तक सीमित कर दिया है, जो खेती उत्पादन की सप्लाई लड़ी को रोक रही है। खेती उपज से संबंधित चीज़ों की लोडिंग और अनलोडिंग का काम बुरी तरह प्रभावित हुआ है क्योंकि देश में जरूरी चीज़ों के परिवहन वाले कुछ ही ट्रक चलते हैं।

बहुत सारे गोदामों और कोल्ड स्टोर के मालिकों ने मजदूरों की कमी के प्रति चिंता के बारे में बताया है। अकेला कोरोना वायरस ही नहीं लोगों को डरा रहा, बल्कि पुलिस की मार भी मजदूरों को घर में रहने और अपने क्षेत्रों की तरफ जाने के लिए मजबूर कर रही है। इसके साथ ही माल के परिवहन पर रोक के कारण लोग डेयरी उत्पाद जैसे कि दूध, अंडे आदि खाने पीने एवं खरीदने में काफी मुश्किलों का सामाना कर रहे हैं।

  • संभव महंगाई

यह बहुत संभव है कि मजदूरों की कमी और सीमित खेती सप्लाई लड़ी अधिक मांग और कम सप्लाई की तरफ लेकर जा रही है, जिसके परिणाम स्वरूप सब्जियों और अन्य व्यापारिक चीजों की कीमत में वृद्धि होगी।

हालांकि इस वर्ष अनाज की कमी संभावित नहीं है क्योंकि गेहूं और धान के काफी भंडार उपलब्ध हैं। यह वास्तव में व्यापारिक सब्जियों और फसलों का मामला है जो सभी कीमतों में अंतर ला रहा हैं ये फसलें बोने का फैसला पिछले सीज़न की वास्तव कीमत के सीधे अनुपात वाला होता है। हाशिये में भारी गिरावट में किसानों का ध्यान अन्य फसलें बोने, सप्लाई की गति और कीमतों को बदलने की तरफ कें​द्रित करने की संभावना है।

  • भेाजन सुरक्षा चुनौतियां

कोरोना वायरस ने सरकार के लिए एक और चिंता बनाई है, वह है भोजन की सुरक्षा। सरकार के पास कितनी भी कम या अधिक खाने—पीने वाली वस्तुएं हैं, इसे लोगों तक पहुंचाना चाहिए। हांलांकि, यहां चुनौती डिलीवरी एजेंटों को जनतक बांट प्रणाली पी डी एस वस्तुओं के सुरक्षित परिवहन को निश्चित बनाना है, ताकि ये संबंधित सरकारी एजंसियों के हाथों में रोड या रेल के द्वारा पहुंच जाएं।

कोरोना वायरस बड़ी आसानी से मनुष्यों से वस्तुओं तक फैलता है, जिस कारण परिवहन का काम और भी मुश्किल बन गया है। बताए गए नियमों और निर्देशों का पालन करना चाहिए जैसे कि सामाजिक दूरी को बनाकर रखना ताकि ग्राहकों तक भोजन वस्तुओं की सुरक्षित पहुंच हो सके।

 

ये कुछ उपाय है जो कृषि क्षेत्र और सप्लाई चेन को सही ढंग से काम करने को निश्चित बनाने में सहायता करते हैं।

  1. सरकार ने तालाबंदी में खेतों के काम काज को सही ढंग से चलाने को निश्चित बनाने के लिए दिशा निर्देश दिए हैं। हालांकि, मजदूरों की कमी और कीमतों के उतार चढ़ाव के कारण, इसे लागू करना मुश्किल होता जा रहा है। सामाजिक सुरक्षा प्रोग्रामों और सरकार के सहायता पैकेज के द्वारा मजदूरों को रोज़गार, मुद्रा और अन्य लाभ उपलब्ध करवाकर उन्हें घर वापिस जाने से रोकने के लिए उपाय अपनाए जाने चाहिए।
  2. यह पिछले समय में देखा गया है कि 1943 बंगाल के अकाल के दौरान 2—3 मिलियन मौतें अनाज की सप्लाई में रूकावट के फलस्वरूप हुई, ना कि भोजन की उपलब्धता की कमी के कारण। यह समझना बहुत ज़रूरी है कि भोजन की सुरक्षा में सप्लाई लड़ी बहुत महत्तवपूर्ण है और सप्लाई लड़ी के काम को और तेज और स्थाई बनाने के लिए अन्य लोगों को काम पर रखना चाहिए।
  3. कृषि समाज की सुरक्षा के लिए नियमित टैस्ट और सामाजिक दूरी को अपनाना चाहिए।
  4. किसानों की मंडियों तक बिना किसी रूकावट के पहुंच होनी चाहिए। यह सरकारी खरीद और निजी मंडियों का मिश्रण हो सकता है।
  5. डेयरी और छोटे पोल्ट्री फार्मों को तुरंत सहायता प्रदान की जानी चाहिए क्योंकि वे महांमारी के द्वारा अधिक प्रभावित हुए हैं।
  6. लॉकडाउन के दौरान ई—कॉमर्स पर करियाना सामान और अन्य उत्पादों की मांग बहुत बढ़ गई है। सरकार को चाहिए कि इस अभ्यास को आगे लाया जाए और उत्साहित किया जाए।
  7. व्यापार को उत्साहित करने के लिए फिलहाल सरकार की तरफ से आयात पाबंदियों और निर्यात पर रोक से परहेज करना चाहिए।
  8. केयर रेटिंग्ज़ के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबन्विस के अनुसार, वितरण की प्रक्रिया को सही ढंग से चलाने के लिए सरकार की तरफ से स्थानिक प्रशासन के स्तरों पर पारदर्शी दिशा निर्देश दिए जाने चाहिए। इससे सप्लाई लड़ी मजदूरों का विश्वास कायम करने के लिए सहायता मिलेगी और अन्य मजदूर वापिस सप्लाई चेन सेवाओं में वापिस शामिल होंगे और नए मजदूर भी शामिल होने के लिए तैयार होंगे।
 

निष्कर्ष

संक्षेप में, यह स्पष्ट तौर पर देखा जाता है कि तालाबंदी ने आर्थिक्ता और उत्पादन की सप्लाई लड़ी दोनों ओर ने, खेती सैक्टर पर बुरा प्रभाव डाला है। लॉकडाउन के दौरान रोज़गार और पैसे की कमी के कारण मजदूर बहुत पीछे रह गए हैं। दूसरी तरफ मंडियों में भोजन वस्तुओं की कम उपलब्धता के कारण भी ग्राहक प्रभावित हो रहे हैं। हालांकि सरकार अपने नए दिशा निर्देशों और रणनीतियों के द्वारा अनाज उत्पादन और सप्लाई चेन की सभी रूकावटों को खत्म करने के लिए सबसे बढ़िया प्रयत्न कर रही है। ताकि खप्तकारों को खाने पीने की वस्तुओं की निर्विघ्न और समय से पहुंच को निश्चित बनाया जा सके।

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