गुड़-1

गुड़ तैयार करने का तरीका

गुड़ मुख्य रूप से मानव उपभोग के लिए है, और इसका उपयोग मीठी वस्तुओं को बनाने में किया जाता है। इसका सेवन कच्चे के रूप में भी किया जाता है। गुड़ का उपयोग शराब और आयुर्वेद दवाइयां बनाने में भी किया जाता है। गुड़ का उपयोग खाद्य प्रसंस्करण उद्योग में कन्फेक्शनरी वस्तुओं, टॉफियों, चॉकलेट्स, च्विंगम आदि के लिए किया जाता है।

 

गुड़ बनाने की तकनीक

गुड़ गन्ने का कुदरती उत्पाद है और चीनी का एक संशोधित पदार्थ है जो कि तत्व और विटामिनों का भरपूर स्रोत है । भारत में कुल गन्ने के उत्पादन का 36% गुड़ बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है जिसमें भारत संसार का 60% गुड़ का उत्पादन करता है।

 

गुड़ बनाने के लिए अनुकूल समय:

गुड़ बनाने का सही समय नवंबर से लेकर अप्रैल तक होता है। गन्ने की अगेती किस्मों का गुड़ नवंबर और दिसंबर में बनता है। दरमियानी-पिछेती किस्मों का गुड़ जनवरी से अप्रैल तक अच्छा बनता है।

  • गुड़ बनाने की विधि
  • रस निकालना
  • रस की सफाई
  • रस को घना करना
  • गुड़ की ढली बनाना
 

रस निकलना: गुड़ बनाने के लिए हमेशा 2/3 भाग का ही प्रयोग करना चाहिए, क्योंकि नीचे के भाग में चीनी की मात्रा अधिक होती है। गन्ने की कटाई और सफाई के बाद इसका रस 24 घंटों के अंदर ही निकाल लेना चाहिए। रस निकालने के उपरांत रस को मलमल के कपड़े से छानकर इसमें से गन्ने और अन्य प्रयोग ना करने योग्य चीज़ें आदि बाहर निकाल लें।

 

रस की सफाई: गन्ने का रस निकालने के उपरांत दूसरा काम उसकी सफाई करना है। रस की सफाई के लिए आमतौर पर भिंडी का प्रयोग किया जाता है। जो कि आमतौर पर पंजाब के होशियारपुर जिला में पाई जाती है। इसके प्रयोग के लिए एक घना घोल तैयार किया जाता है। जिस लिए इसकी छाल को 24 घंटे पानी में भिगोने के उपरांत हाथ से अच्छी तरह रगड़कर चिकनाहट भरपूर घोल तैयार कर लिया जाता है जो रस सफाई के लिए प्रयोग किया जाता है। यह घोल रस में से कई तरह के अवांछित पदार्थ जैसे कि रंगदार मादा और अन्य नाइट्रोजन भरपूर चीज़ें आदि अलग करने में मदद करता है। इस घोल का प्रयोग गुड़ का बढ़िया कण और ठोसपन में सहायक होता है। एक लीटर घोल 100 लीटर रस की सफाई के लिए काफी होता है। इस घोल के आलावा कुछ ख़ास रसायन जैसे कि सुपर फास्फेट, फास्पोरिक एसिड, सोडियम कार्बोनेट, सोडियम बाईकार्बोनेट आदि का प्रयोग किया जाता है।

 

रस को घना करना: रस की सफाई करने के बाद इसे उबालने के लिए कड़ाहे में डाला जाता है। इस कड़ाहे को उसकी समर्था के 1/3 हिस्से तक भरने उपरांत इसे थोड़ी-थोड़ी आग पर गर्म किया जाता है ताकि रस का तापमान 85 डिग्री सेल्सियस तक पहुँच जाये। इस तापमान के रस में से नाइट्रोजन भरपूर तत्व और अन्य अवांछित पदार्थ एक झाग की तरह रस ऊपर आने शुरू हो जाते हैं। इस ऊपर आई हुई झाग को साफ़ करने के उपरांत रस को तेज़ तापमान पर उबाला जाता है। जब उबल रहे रस का तापमान 100 डिग्री सेल्सियस से ऊपर जाने लग जाये तो आग कम करके पत के बनने पर तापमान 114 -116 डिग्री सेंटीग्रेट गुड़ लें और 120 -122 डिग्री सेंटीग्रेट शक़्कर के लिए तक गर्म किया जाता है।

 

गुड़ की ढली बनाना: जब पत का तैयार हो जाये तो इसे तुरंत एल्यूमीनियम, मिट्टी या लकड़ी के बने बर्तन में डाल दें। जो के पत के ठंडे होने या अच्छा कण बनने के लिए सहायक होता है। पत को बर्तन में ठंडा होने के लिए कुछ समय के लिए छोड़ दें। जब पत भेली बनाने योग्य हो जाये तो लोहे की बनी खुरपी से अपने मन पसंद आकार की गुड़ की ढली बना लें।

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