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गाजर बूटी के नुकसान और इसकी रोकथाम

गाजर बूटी भारत में 1960 के समय में मैक्सिकन गेहूं के साथ आई थी। यह नदीन देश के काफी रकबे में अपना बुरा प्रभाव छोड़ रहा है। इस नदीन को गाजर घास, कांग्रस घास, पार्थिनियम ग्रास, सफेद टोपी आदि वाला पौधा भी कहा जाता है। प्राकृतिक संसाधन का नुकसान करने के अलावा यह नदीन मनुष्य और पशुओं की सेहत के लिए भी हानिकारक है।

गाजर बूटी की पहचान:- गाजर बूटी गहरी जड़ें, सीधे और सख्त तने के साथ बढ़ने वाला पौधा है जिसकी उचाई औसतन 3-4 फ़ीट होती है। इस नदीन के पत्ते गाजर के पत्तों की तरह होते हैं और पौधे को सफेद रंग के फूल काफी संख्या में आते हैं। एक पौधे से 5000 -25000 तक बीज पैदा हो सकता है।

गाजर बूटी का जीवनकाल:- यह नदीन फरवरी में उगना शुरू होता है और नवंबर तक उगता रहता है। बारिश के आधार पर एक साल में यह नदीन लगभग 4 से 5 बार उगता है। गाजर बूटी की समस्या बारिश के महीनों (जुलाई-सितंबर) में बहुत होती है। इस नदीन को पानी की बहुत कम ज़रूरत होती है इसलिए यह नदीन बारानी हालातों में भी उग सकता है और बीज बना लेता है। बहुत ज़्यादा ठंड के समय इस नदीन के पत्ते सूख जाते हैं। छाया वाले स्थान पर इसकी वृद्धि रुक जाती है पर इसका पौधा हरा ही रहता है।

सर्दियों की ऋतु में नदीन की जमने और बढ़ने की शक्ति कम होती है और बारिश शुरू होने से यह उगना शुरू हो जाता है। इस बूटी के बीज बहुत बारीक होने के कारण एक जगह से पानी या हवा के साथ दूर-दूर तक चले जाते हैं और ज़मीन के अंदर थोड़ी नमी मिलने के कारण ही उग आते हैं। इस नदीन का पौधा अपना जीवन काल 3-4 महीनों में पूरा कर लेता है।

मनुष्य सेहत पर असर:- गाजर बूटी मनुष्य सेहत के लिए बहुत ही हानिकारक है। यदि इस नदीन के साथ ज़्यादा समय तक संपर्क रहे तो कई तरह के रोग जिस तरह कि सांस नली के रोग, अस्थमा, ज़ुखाम, नाक में से पानी निकलना आदि हो जाते हैं। यदि गाजर पौधे के सूखे परागकण भी सांस के ज़रिये अंदर चले जाये तो भी बीमारियां लग सकती हैं। इसके अलावा बुखार, चमड़ी का रोग, चमड़ी की सूजन, खुजली, धफ्फड़, ज़ख्म आदि भी हो जाते हैं। कई बार यह ज़ख्म बहुत ही गंभीर रूप धारण कर लेते हैं और कोहड़ तक का खतरा बन जाता है।

गाजर बूटी का फसल को नुकसान:- यह नदीन अपने आस पास किसी भी पौधे को उगने नहीं देता और तेजी से बढ़ता है। यह नदीन जो केवल खाली जगह पर उगता था, आजकल बहुत सी फसलों और बागों में भी समस्या बन चुका है। यह नदीन गन्ने, बरसीम के बीज वाली फसल, सीधा बोया धान, आलू, पुदीना, गेहूं, सब्जी आदि में भी पाया जाता है। गाजर बूटी मिलीबग के लिए बदलवें पौधों के तौरपर काम करती है। मिलीबग एक बहुत ही खतरनाक रस चूसने वाला कीड़ा है जो फूलों, फल और ख़ास तौरपर कपास की फसल का खात्मा कर देता है। जब खेतों में मुख्य फसल ना हो तो यह कीड़ा गाजर बूटी ऊपर पलता है।

गाजर बूटी की व्यापक रोकथाम:- इस नदीन पर नियंत्रण करने के लिए कोई भी विधि उपयुक्त नहीं है, इसलिए इसका खात्मा करने के लिए व्यापक रोकथाम की ज़रूरत है। यह नदीनों पर नियंत्रण डालने की विधि है जिसमें हर संभव तरीके का इस्तेमाल योजनाबद्ध तरीके से किया जाता है ताकि फसल का आर्थिक नुकसान से बचाव किया जा सके और वातावरण भी दूषित ना हो:-

गाजर बूटी की रोकथाम करने के लिए इसको फूल आने और बीज बनने से पहले जड़ों की पुटाई इसका बहुत ही असरदार तरीका है। गाजर बूटी की बार-बार कटाई करके या जड़ से पुटाई करके इसे नष्ट किया जा सकता है। फूल आने पर इस नदीन की पुटाई करने से इसके परागण फ़ैल सकते हैं और बीमारियां पैदा कर सकते हैं। इसी तरह यदि बीज बनने के बाद पुटाई की जाये तो इसके बीज हवा से दूर-दूर तक फ़ैल सकते हैं और इसकी समस्या बढ़ सकती है। इसलिए नदीन की शुरुआत के समय ही इसकी पुटाई करके नष्ट करना चाहिए।

गाजर बूटी को लंबे दस्ते वाले औजार जैसे कि कही या कसोले के साथ जड़ों से पुटाई करें क्योंकि यदि इसके पौधे की ज़मीन के ऊपर से कटाई की जाये तो दोबारा उग जाता है।

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