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जानें सफेदे की नर्सरी के द्वारा उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश से आई बीमारी के बारे में

पिछले दिनों वन और जंगली जीव सुरक्षा विभाग पंजाब ने सफेदे की एक बीमारी देखी जिसके हमले से सफेदे के पौधे के पत्ते झड़ जाते हैं और पौधा कमज़ोर हो जाता है। इससे टहनियां सिरे से शुरू होकर सूखनी शुरू हो जाती हैं और पौधे के तने पर कोहड़ के निशान भी बन जाते हैं। इसके बाद क्लोटोटराइकम और डिपलोडिया नाम की फंगस इस कोहड़ में पलने लग जाती हैं और पौधे को पूरी तरह सूखा देती हैं। इस रोग का नाम तने का मुरझाना हैं। यह रोग होशियारपुर और शहीद भगत सिंह नगर जिलों की प्लांटेशन में देखा गया है। यह बीमारी विशेष तौर पर उन पौधों में देखी गई है जो फरीदकोट जिले के नर्सरी बेचने वाले व्यापारी उत्तराखंड और पश्चिमी प्रदेश से लाये थे और इन दोनों जिलों के किसानों को बेचे थे।

रोकथाम :

  • बिजाई के लिए पौधे सिर्फ जंगलात विभाग की प्रमाणित नर्सरियों से लें।
  • वृक्षों पर पहले 1 ग्राम बाविस्टिन 50 WP प्रति लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें। यह छिड़काव जून के आखिरी सप्ताह से शुरू करके 15-15 दिनों के अंतराल पर अगस्त तक जारी रखने से पत्तों के धब्बा रोगों से बचाया जा सकता है। अगस्त महीने के दूसरे पखवाड़े में 2 ग्राम बाविस्टिन 50 WP प्रति लीटर पानी के हिसाब से वृक्षों के आस-पास वाली मिट्टी में डालें। एक वृक्ष के लिए 25 लीटर दवाई के घोल का प्रयोग करें।

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