नवजात बछड़ों में पायी जाने वाली स्वास्थ्य समस्याएं और उनके निदान

कई बार प्रसव प्रक्रिया के समय नवजात बछड़ा किसी अंदरूनी चोट या ऑक्सीजन की कमी का शिकार हो सकता है। जन्म के कुछ समय पश्चात् बछड़े को गर्भाशय के बाहर के जीवन के लिए अपने आप को अनुकूल बनाना पड़ता है।

इस अनुकूलन प्रक्रिया के दौरान बछड़े को कई समस्याएं हो सकती हैं। जैसे :

• सामान्य व्यवहार में सुस्ती
• शारीरिक तापमान में गिरावट
• श्वास गति का अनियमित होना
• कमजोरी
• निष्क्रियता

असामान्य स्थिति में जन्म के 15-20 मिनट बाद  बछड़ा बीमार के लक्षण दिखाना शुरू कर देता है और यदि प्रबंधन सही तरीके से किया जाये तो इन समस्याओं से बचा जा सकता है।

तो आज हम आपसे शेयर करने जा रहे हैं। नवजात बछड़े की स्वास्थ्य समस्याएं और उनका निदान कैसे किया जाये आइये जानते हैं:

आमतौर पर नवजात बछड़ों में पायी जानी वाली स्वास्थ्य समस्याएं

• निष्क्रियता या सुस्ती – कई बार काफी देर तक खड़े रहना और दूध ना पीना इसके लक्षण हैं। सामान्य गतिविधियां और फुर्तीलापन शरीर में गर्मी पैदा करती हैं और बीमारियों से बचने के लिए रोग प्रतिरोधक क्षमता प्रदान करती हैं।

• शारीरिक तापमान में गिरावट – जन्म के तुरंत बाद बछड़े का शारीरिक तापमान मादा के गुदा तापमान से लगभग एक या दो फार्नाहीट ज्यादा होता है, जो 15-20 मिनट में 102 डिगरी तक आ जाता है। यदि यह तापमान लगातार गिरता रहे तो यह एक चिंता का विषय हो सकता है।

• रक्त में ऑक्सीजन की कमी – श्वास प्रणाली के ठीक से कार्य न कर पाने के कारण यह समस्या पैदा हो सकती है। यह समस्या कई प्रकार की अन्य अन्य समस्याओं को भी जन्म देती है।

• रक्त की अमतला – जन्म के समय रक्त में ऑक्सीजन की कमी होती है, जिससे रक्त हल्का सा अम्लीय होता है। जैसे जैसे बछड़ा सांस लेना शुरू करता है। यह समस्या दूर हो जाती है, लेकिन यदि बच्चा सही से सांस ना ले तो यह समस्या और भी ज्यादा बढ़ सकती है।

• रक्त में गुलूकोज़ की कमी – बछड़े इस समस्या के सबसे ज्यादा शिकार होते हैं लेकिन कोलस्ट्रम या खीस की सही खुराक के बाद यह समस्या नहीं होती।

• खीस की कम खपत – खीस बछड़े को रोगों से लड़न की क्षमता प्रदान करती है। इसकी कम खपत या पिलाने में देरी की वजह से बछड़े की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है।

बछड़े को बीमारियों से बचाने के लिए प्रबंधन

• जन्म के तुरंत बाद बच्चे की देखभाल अति आवश्यक है। उसके लिए निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखें।

• बछड़े का जन्म स्थान सूखा, स्वच्छ और आरामदायक होना चाहिए। बछड़े को अधिक गर्मी व सर्दी से बचाकर साफ जगह पर रखें।

• जन्म के तुरंत बाद बछड़े में संक्रमण का खतरा बहुत ज्यादा होता है, इसलिए बछड़े को दूषित पदार्थों के संपर्क में आने से बचाएं। जन्म के 1-2 घंटे के अंदर बछड़े को खीस अवश्य पिलाएं। इसके लिए जेर गिरने का इंतज़ार बिल्कुल ना करें। एक दो घंटे के अंदर बच्चे को पिलाया हुआ खीस उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। बछड़े को उसके वजन का 10 प्रतिशत दूध पिलाना चाहिए।

• जन्म के ठीक बाद बछड़े के नाक-मुंह और शरीर के ऊपर की जेर/झिल्ली हटा दें।

• आमतौर पर गाय बछड़े को जन्म देते ही उसे जीभ से चाटने लगती है। इससे बछड़े के शरीर को सूखने में आसानी होती है, जिससे बच्चे का तापमान नहीं गिरता, त्वचा साफ हो जाती है और श्वसन तथा रक्त संचार सुचारू होता है।

• यदि गाय बछड़े को ना चाटे तो बछड़े के शरीर को सूखे कपड़े से पोंछकर सुखाएं। हाथ से छाती को दबाकर और छोड़कर कृत्रिम सांस प्रदान करें। यदि सांस लेने में दिक्कत हो रही है तो छाती मलें तथा बच्चे की पिछती टांगे पकड़ कर उसे उल्टा लटकाएं।

• बच्चे की नाभि को शरीर से तीन चार अंगुली नीचे (2-5 सै.मी.) पास पास दो स्थानों पर सावधानी से मजबूत धागे से बांधे। अब नए ब्लेड या साफ कैंची से दोनों बंधी हुई जगहों के बीच नाभि को काट दें। इसके बाद कटी हुई नाभि पर टिंचर आयोडीन या बोरिक एसिड या कोई एंटीबायोटिक लगा दें।

• बाड़े के गीले बिछौने को हटाकर स्थान को बिल्कुल साफ और सूखा रखना चाहिए।

• बछड़े के वजन का ब्योरा रखना चाहिए।

गाय के थन और लेवे को क्लोरीन के घोल द्वारा अच्छी तरह से साफ करके सुखाएं।

• बछड़े को मां का पहला दूध अर्थात् खीस का पान जन्म के बाद जितना जल्दी हो सके करने दें। बछड़ा एक घंटे में खड़े होकर दूध पीने की कोशिश करने लगता है।

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