गोटा कोला एक आयूर्वेदिक औषधी है। जिसे प्राचीन काल से विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं के लिए उपयोग किया जा रहा है। गोटू कोला को हिन्दी में ब्राह्मी के नाम से जाना जाता है।इस पौधे का वानस्पतिक नाम सेंटेला एशियाटिका है। यह पौधा विशेष रूप से समशीतोष्ण और उष्णकटिबंधीय दलदल क्षेत्रों में पाया जाता है। इस पौधे के तने पतले होते हैं। पत्तियां गोलाकार होती हैं जिनमें नसों का जाल दिखाई देता है इसकी पत्तियां चिकनी और चमकदार होती हैं। इस पौधे के फूल सफेद या गुलाबी रंग के होते हैं, जो झुंड के रूप में मिट्टी के नज़दीक होते हैं।यह पौधा देश के उष्ण और उपोष्ण दलदली क्षेत्रों में पाया जाता है।
मिट्टी — इसका पौधा अत्याधिक नमी, उपजाऊ, रेतली दोमट और चिकनी मिट्टी में अच्छे से बढ़ता है।
खेत की तैयारी — खेत की एक बार जोताई करें और दो बार हल से जोताई करें। खेत की तैयारी के समय 8 टन रूड़ी की खाद प्रति एकड़ के हिसाब से डालें।
बिजाई का समय — इसकी बिजाई के लिए फरवरी मार्च का समय उपयुक्त होता है। फसल में 45×45 सैं.मी. का फासला रखें। यह एक सिंचित फसल है।
बिजाई का ढंग —इसकी बिजाई प्रजनन ढंग से की जाती है।
प्रजनन — इसका प्रजनन जड़ के भागों या बीजों के द्वारा किया जाता है।
नर्सरी की तैयारी — इसका पौधा छांव में अच्छे से बढ़ता है। बिजाई के लिए एक कटा हुआ तना प्रयोग किया जा सकता है। एक एकड़ में लगभग 120 तने प्रयोग किए जा सकते हैं। बिजाई के समय बीज के उपचार की जरूरत नहीं होती।
खादें — 74 किलो यूरिया, 130 किलो एस एस पी और 34 किलो पोटाश बराबर मात्रा में चार भागों में डालें।
अंतर फसली — इस फसल की अंतर फसली आमतौर पर आम और अन्य वृक्षों के साथ की जाती है।
खरपतवार नियंत्रण — इस फसल को लगातार निराई गोडाई की आवश्यकता होती है। मॉनसून के मौसम में, बैडों में जल जमाव को रोकना आवश्यक है।
सिंचाई — सूखे महीनों में सिंचाई की आवश्यकता होती है और बारिश के मौसम में जल निकास की आवश्यकता होती है।
कीट और बीमारी नियंत्रण — इस फसल में किसी बीमारी या कीट का हमला नहीं होता।
कटाई — यह फसल बिजाई के बाद 90 दिनों में पक जाती है। इसकी कटाई हाथों से की जाती है।
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