कम लागत और अधिक गुणों वाली तिलहनी फसल: तिल

भारत में आदिकाल से ही तिल की खेती एक मुख्य तिलहनी फसल के तौर पर की जाती रही है। पुरातन इतिहास में इस फसल का अधिक ज़िक्र मिलता है। तिल में 40—55 प्रतिशत तेल, 20—25 प्रतिशत प्रोटीन, 15 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेटस और कुछ खनिज पदार्थ होते हैं। इसमें मौजूद एंटीऑक्सीडेंट बीज और तेल की गुणवत्ता को लंबे समय तक खराब नहीं होने देते। तिल का तेल खाने के तौर पर बहुत बढ़िया समझा जाता है। क्योंकि यह नसों में जमता नहीं है और कोलेस्ट्रॉल की मात्रा कम करता हैं। उपयुक्त फसल तकनीकें अपनाकर इस फसल की पैदावार में वृद्धि की जा सकती है। निम्नलिखित तकनीकें अपनाकर तिल की पैदावार में वृद्धि की जा सकती है।

तिल की फसल अच्छे जल निकास वाली और रेतली मैरा ज़मीन में अच्छी होती है। तिल की बिजाई के लिए खेत को अच्छे से तैयार किया जाना चाहिए, क्योंकि तिल का बीज बहुत बारीक होता हैं तिल की फसल (विशेषकर शुरूआती अवस्था में) खड़े पानी को बिल्कुल नहीं सहार सकती, इसलिए खेत एकदम बराबर और नदीनों से रहित होना चाहिए। खेत की तैयारी के लिए 2—3 बार हल से जोताई करें और हर बार सुहागा ज़रूर लगाएं।

पंजाब खेतीबाड़ी यूनिवर्सिटी की तरफ से प्रमाणित तिल की उन्नत किस्में:

टी सी 289— इसकी औसतन पैदावार 210 किलो प्रति एकड़ है।
पंजाब तिल नं. 1— इसकी औसतन उपज 200 किलो प्रति एकड़ है।

बिजाई का समय

सिंचित ज़मीनों में तिल की बिजाई मध्य जून में भरवीं बिजाई से पहले सिंचाई करने के बाद की जा सकती है। जहां पानी की सुविधा नहीं है वहां तिल की बिजाई वर्षा शुरू होने पर जो कि जून के आखिर में या जुलाई के शुरू में होती है, कर लेनी चाहिए। बहुत ज्यादा अगेती बिजाई करने से तिल की फसल फिलोडी रोग का शिकार बन जाती है।

बीज की मात्रा

एक एकड़ बिजाई के लिए एक किलो बीज ही काफी हैं।

फासला

कतारों में 30 सैं.मी. का फासला रखें। बीज उगने के तीन सप्ताह बाद पौधे विरले कर दें और पौधे से पौधे का फासला 15 सैं.मी. रखें।

बीज की गहराई

फसल की एकसमान पकाई और अच्छी उपज लेने के लिए जरूरी है कि बीज की गहराई 4—5 सैं.मी. से अधिक ना हो।

सिंचाई

आमतौर पर तिल की खेती बारानी स्थितियों में की जाती है और इसे बिजाई के बाद पानी की जरूरत नहीं पड़ती पर यदि लंबे समय तक वर्षा ना हो और सूखा पड़ने लगे तो एक पानी फल पड़ने से फलियां बनने के समय जरूर लगा देना चाहिए।

कटाई

इस फसल की समय से कटाई बहुत जरूरी है, नहीं तो तिल झड़ने का डर रहता है। जब पौधों के तने पीले पड़ने लगें और फलियां भी रंग बदलने लगें तो समझ लें कि फसल पक गई है। फसल को थोड़ी नर्म स्थिति में कटाई कर इसके छोटे छोटे गठ्ठरी बना लें। गठ्ठरियों को अच्छी तरह सुखाकर दो—तीन बार झाड़ने से सभी तिल निकल आते हैं।

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