• पशुओं को धूप और ज्यादा गर्मी से बचाने के लिए उचित प्रबंध करें।
• पशुओं को एफ.एम.डी., गलघोटू रोग, लंगड़ा बुखार, एंट्रोटॉक्सीमिया आदि का टीकाकरण करवाना चाहिए।
• एफ.एम.डी. से पीड़ित पशुओं को अलग बाड़े में रखना चाहिए ताकि वह स्वस्थ पशुओं को प्रभावित ना करे। यदि एफ.एम.डी. क्षेत्र में फैला हुआ है, तो अपने पशुओं को संक्रमित पशुओं के संपर्क में ना आने दें।
• एफ.एम.डी. द्वारा पीड़ित बछड़ों को मां का दूध नहीं पिलाना चाहिए, क्योंकि यह उनके दिल को प्रभावित कर सकता है और मौत भी हो सकती है।
• बीमार पशुओं के मुंह, खुरों और थनों को पोटाशियम परमैंगनेट के 1 प्रतिशत घोल से साफ करना चाहिए।
• यदि पशुओं में गलघोटू रोग या लंगड़ा बुखार के लक्षण नज़र आयें, तो तुरंत पशु चिकित्सक से संपर्क करें।
• बौटूलिज़म को फैलने से रोकने के लिए मरे हुए पशुओं को चरागाहों वाले इलाकों में से हटा देना चाहिए।
• इस समय बकरी और भेड़ को पी पी आर, चेचक और एंट्रोटॉक्सीमिया रोग होने की संभावना है। उन्हें बीमारीनाशक टीका लगाएं।
• पशुओं के डॉक्टर/पशुओं के सेहत कर्मचारी से सलाह लेने के बाद दवाइयों की सही खुराक का प्रयोग का प्रयोग करके पशुओं की डीवॉर्मिंग करवानी चाहिए।
• पशुओं को बाहरी—परजीवियों से बचाने के लिए और अनुकूल दवाई लेने के लिए वैटनरी डॉक्टर/पशु सेहत कर्मचारी से संपर्क करें। जहां पशुओं को रखा जाता है, उस शैड को साफ सुथरा रखें। निरगुंडी, तुलसी या लैमन घास के गुच्छे पशुओं के शैड में लटकाए जाते हैं इनकी सुगंध बाहरी परजीवियों को दूर रखती है। आमतौर पर शैड को साफ रखने के लिए एक लैमन घास के कीटाणुनाशक तेल का भी प्रयोग किया जाता है।
• यह निश्चित बनाएं कि मॉनसून समय के दौरान पशुओं के शैड सूखे रहें। मक्खियों को दूर रखने के लिए शैड में नीलगिरी या लैमन घास के तेल की स्प्रे करें।
• हर रोज़ पशुओं को 30—50 ग्राम खनिज मिश्रण फीड के साथ दें। इससे पशुओं का बचाव और दूध उत्पादन में वृद्धि होती है।
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