खीरे का मूल स्थान भारत है। यह एक बेल की तरह लटकने वाला पौधा है जिसका प्रयोग पूरे भारत में गर्मियों की सब्ज़ी के रूप में किया जाता हैं। खीरे के फल को कच्चा, सलाद या सब्जियों के रूप में प्रयोग किया जाता है। खीरे के बीजों का प्रयोग तेल निकालने के लिए किया जाता है जो शरीर और दिमाग के लिए बहुत बढ़िया होता है। खीरे में 96% पानी होता है, जो गर्मी के मौसम में अच्छा होता है। इस पौधे का आकार बड़ा, पत्ते बालों वाले और त्रिकोणीय आकार के होते हैं और इसके फूल पीले रंग के होते हैं। खीरा एम बी (मोलिब्डेनम) और विटामिन का अच्छा स्त्रोत है। खीरे का प्रयोग त्वचा, किडनी और दिल की समस्याओं के इलाज और अल्कालाइज़र के रूप में किया जाता है।
बिजाई का समय: इसकी बिजाई फरवरी–मार्च के महीने में की जाती है। इसके अलावा इसकी बिजाई जून–जुलाई में की जाती है।
फासला: 2.5 मीटर चौड़े बैड पर हर जगह दो बीज बोयें और बीजों के बीच 60 सैं.मी. का फासला होना चाहिए।
बीज की गहराई: बीज को 2-3 सेंटीमीटर गहराई पर बोयें।
छोटी सुरंगी विधि: इस विधि का प्रयोग खीरे की अगेती पैदावार लेने के लिए किया जाता है। यह विधि फसल को दिसंबर और जनवरी के ठंड वाले मौसम से बचाती है। दिसंबर के महीने में 2.5 मीटर चौड़े बैडों पर बिजाई की जाती है। बीजों को बैड के दोनों तरफ 45 सेंटीमीटर के फासले पर बोयें। बिजाई से पहले, 45-60 सेंटीमीटर लंबे और सहायक डंडों को मिट्टी में गाढ़े। खेत को प्लास्टिक की शीट (100 गेज़ मोटाई वाली) को डंडों की सहायता से ढक दें। फरवरी महीने में तापमान सही होने पर प्लास्टिक शीट को हटा दें।
- गड्ढे खोद कर बिजाई करना
- खालियां बनाकर बिजाई करना
- गोलाकार गड्ढे खोद कर बिजाई करना
Punjab Kheera-1: यह किस्म 2018 में जारी की गई। इस किस्म के फल हरे गहरे रंग के होते हैं, जिनका स्वाद कम कड़वा और औसतन भार 125 ग्राम होता है इस किस्म के खीरों की औसतन लंबाई 13-15 सेंटीमीटर होती है। इसकी तुड़ाई सितंबर और जनवरी महीने में फसल बोने से 45-60 दिनों के बाद की जा सकती है। सितंबर महीने में बोयी फसल की औसतन पैदावार 304 क्विंटल प्रति एकड़ और जनवरी महीने में बोयी फसल की उपज 370 क्विंटल प्रति एकड़ होता है।
Punjab Naveen: यह किस्म 2008 में तैयार की गई है।| इस किस्म के पौधे के पत्तों का रंग गहरा हरा, फलों का आकार बराबर बेलनाकार और तल मुलायम और फीके हरे रंग का होता है। इसके फल कुरकुरे और कड़वेपन रहित और बीज रहित होते है। इसमें विटामिन सी की उच्च मात्रा पायी जाती है और सूखे पदार्थ की मात्रा ज्यादा होती है। यह किस्म 68 दिनों में पक जाती है। इसके फल स्वादिष्ट, रंग और रूप आकर्षित, आकार और बनावट बढिया होती है। इस किस्म की औसतन पैदावार 70 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
दूसरे राज्यों की किस्में
Pusa Uday: यह किस्म आई.ऐ.आर.आई के द्वारा तैयार की गई है। इस किस्म के फलों का रंग फीका हरा, दरमियाना आकार और लम्बाई 15 सेंटीमीटर होती हैं। एक एकड़ ज़मीन में 1.45 किलोग्राम बीजों का प्रयोग करें। यह किस्म 50-55 दिनों में पक जाती है। इस किस्म की औसतन पैदावार 65 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
Pusa Barkha: यह किस्म खरीफ के मौसम के लिए तैयार की गई है। यह उच्च मात्रा वाली नमी, तापमान और पत्तों के धब्बे रोग को सहन कर सकती है। इस किस्म की औसतन पैदावार 78 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
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