मधुमक्खी पालन के लिए मधुमक्खी के बारे में जरूरी जानकारी होना बहुत आवशयक है। मधुमक्खी पालन से पहले इसका प्रसिक्षण लेना बहुत जरुरी है क्योंकि इसके डंक की वजह से मनुष्य की मृत्यु भी हो सकती है। वर्तमान में मधुमक्खी पालन का प्रशिक्षण विभिन्न विश्वविद्यालयों, कृषि विज्ञानं केंद्रों, मौनपालन केंद्रों एवं खादी ग्रामोद्योग जैसी सरकारी तथा गैर सरकारी संस्थाओं द्वारा दिए जाते हैं। इसलिए इसे समझना बहुत जरूरी है।
मधुमक्खी की विभिन्न प्रजातियां:
अपने आसपास के मौसम के अनुसार मधुमक्खी प्रजातियों की जानकारी बहुत जरूरी है। भारतीय मधुमक्खी को पर्वतीय क्षेत्रों में ही सफलतापूर्वक पाला जा सकता है। मैदानी क्षेत्रों में पालने पर यह कुछ समय बाद उसे छोड़कर भाग जाती है। देश के मैदानी भागों और तराई क्षेत्रों में युरोपियन मधुमक्खी (एपिस मेलिफेरा) अधिकतर पाली जाती है।
मधुमक्खी की शारीरिक सरंचना:
कीट वर्ग का प्राणी होने के कारन इसके शरीर को तीन भागों में बांटा गया है: सर, धड़ और उदर।
मधुमक्खी के परिवार के कार्य:
मधुमक्खी एक सामाजिक प्राणी है जिसमें वंश के सभी कार्य विभिन्न सदयोंमे बंटे होते हैं। मधुमक्खी परिवार में तीन मुख्या सदस्य होते हैं: रानी, श्रमिक एवं नर मधुमक्खी।
रानी मधुमक्खी:
रानी मधुमखी अन्य मखियों से आकर में बड़ी होती है और इसके पंख छोटे होते हैं, यह सुनहरी और चमकीली होती है और इसका डांक अन्य मधुमक्खियों से जहरीला होता है। अन्य मधुमक्खियों द्वारा रानी मधुमक्खी का ख़ास ध्यान रखा जाता है। जब रानी मधुमखी की अंडे देने की क्षमता ख़तम हो जाती है तो श्रमिक मधुमक्खियों द्वारा इसे मार दिया जाता है। रानी मधुमक्खी को बनने में 16 दिन लगते हैं और इसका जीवनकाल 2-3 वर्ष होता है।
श्रमिक मधुमक्खियां:
ये हजारों को संख्या में होती हैं और मादा होती हैं। पहले 3 सप्ताह ये छत्ते के अनादर के कार्य करती हैं। रॉयल जेली का निर्माण भी इन मधुमक्खियों द्वारा 5-15 दिनों में किया जाता है। इनका जीवन काल 40 से 42 दिन का होता है जिसमे से ये 21 दिन छत्ते के भीतर और उसके बार छत्ते के बहार का कार्य करती हैं। ये रानी मधुमक्खी और शिशुओं की देखभाल भी करती हैं।
नर मधुमक्खियां: ये मधुमक्खियां मोटी चौड़ी एवं काले रंग की होती हैं। इनका रंग लाल-काला सा होता है। इनकी आँखें बड़ी होती हैं। इनका उद्देश्य रानी मधुमक्खी के साथ मैथुन क्रिया करना तथा शेष समय भोजन एवं आराम करना होता है। इसलिए इनको ‘निखट्टू” भी कहा जाता है।एवसंत ऋतू में ज्यादा बनती हैं ताकि रानी मधुमक्खी के साथ सम्भोग करके उसे गर्भित कर सकें। जन्म के 14-15 दिनों तक ये केवल खाती पीती एवं आराम करती हैं। ये मधुमक्खियां 100 की संख्या में होती हैं, जिन्हे प्रतिकूल परिस्थितियों में भोजनाभाव में यां तो मार दिया जाता है यां नर पाश में फेंक दिया जाता है। नर मधुमखियों से बड़े होने के कारण इनके कोष्ठकों का आकर भी बड़ा और उभरा हुआ होता है।
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