खरबूजा पूरे भारत वर्ष में मुख्य रूप से उगाया जाता है। इस फल को ताजा ही खाया जाता है। इसमें कार्बोहाइड्रेट, विटामिन ए, सी और खनिज पदार्थ भी पाये जाते हैं जो शरीर के लिए आवश्यक होते हैं। आज हम आपसे शेयर करने जा रहे हैं खरबूजे की उन्नत किस्मों और उसकी बिजाई से लेकर तुड़ाई तक ध्यान रखी जाने वाली बातों के बारे में
उन्नतशील किस्में
हरा मधु: यह खरबूजे की अच्छी किस्म है। जिसमें बेल 3-4 मीटर लंबी होती है। फल बड़े, गोल, ऊपर की तरफ थोड़े कम चौड़े होते हैं। फल का छिल्का हरे रंग का होता है जिसपर गहरे हरे रंग की पट्टियां होती हैं। फल का औसतन भार 1 किलो होता है।
पूसा शरबती : इस किस्म की बेल सीधी बढ़ने वाली होती हैं। फल मध्यम आकार के गोल या अंडाकार होते हैं। एक बेल पर 3-4 फल लगते हैं। इसकी औसतन उपज 41.6-54.1 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
पूसा मधुरस : इस किस्म की बेल खूब बढ़ने वाली होती हैं। इसके फल चपटे गोलाकार होते हैं। फल का छिल्का चिकना और पीला होता है। जिस पर हरे रंग की पट्टियां पायी जाती हैं। इसकी औसतन उपज 50-64 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
दुर्गापुर मधु : इस किस्म के फल लंबे आकार के होते हैं। इसका छिल्का, चिकना और हल्के हरे रंग का होता है। इस किस्म के फल का औसतन भार 500-700 ग्राम तक का होता है।
बीज : 1.6-2.5 किलोग्राम प्रति एकड़
बिजाई का समय
• उत्तरी मैदानी क्षेत्र – फरवरी से मार्च
• उत्तर पूर्वी क्षेत्र – नवंबर से मार्च
• पश्चिमी क्षेत्र – सितंबर से अक्तूबर
• पहाड़ी क्षेत्र – अप्रैल से मई
मिट्टी : हल्की से भारी मिट्टी में इस फसल को सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है। मिट्टी की पी एच 6.6-7.0 होनी चाहिए।
खेत की तैयारी : खेत में बिजाई के लिए दो – तीन बार हल से जोतकर और सुहागा फेर कर मिट्टी समतल और भुरभुरी बना लें।
फासला : कतार से कतार में 1.5-2.5मीटर और पौधे से पौधे में 0.6-1.0मीटर का फासला रखें।
खाद : खेत की अंतिम तैयारी के समय 8.3-10.4 टन गली सड़ी गोबर की खाद या कंपोस्ट मिलाएं। नाइट्रोजन 20-52 किलो और पोटाश 10-25.8 किलो प्रति एकड़ में डालें। नाइट्रोजन की एक चौथाई मात्रा बिजाई के 30 दिन बाद और बाकी की मात्रा 45 दिन बाद फूल आने के समय डालें।
सिंचाई : पहली सिंचाई बिजाई के 2-3 दिन बाद के बाद और उसके बाद 6-7 दिन के अंतराल पर करें। फल के पूरी तरह विकसित होने और पकने की अवस्था में सिंचाई बंद कर दें।
कीट और रोकथाम :
कद्दू की सुंडी: यह सुंडी पत्तियों को खाकर फसल को नुकसान पहुंचाती है। इसकी रोकथाम के लिए क्लोरपाइरीफॉस 3.0 मि.ली. या प्रोफेनोफॉस 2.0 मि.ली. को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
सफेद मक्खी: ये कीट पत्तियों की निचली सतह पर पत्तियों का रस चूसते हैं जिससे पत्तियां पीली पड़ जाती हैं। इसकी रोकथाम के लिए थायोमैथोक्सम 25 डब्लयु जी 0.5 ग्राम या इमीडाक्लोप्रिड 0.5 मि.ली. को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
फलों की तुड़ाई
मौसम और किस्म के आधार पर बिजाई के 60-70 दिनों के बाद फल तुड़ाई के योग्य हो जाते हैं। पूरी तरह से पके फलों की तुड़ाई करनी चाहिए। इसकी औसतन उपज 66.6-83.3 कि्ंवटल प्रति एकड़ होती है।
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