जानें कितना लाभकारी है आंवले का फल

आंवले की फसल बहुत तरह की दवाइयां बनाने के काम आती है। आंवले से अनीमिया, जख्म, दस्त, दांत का दर्द, बुखार आदि के इलाज के लिए प्रयोग किया जाता है। इसके फल विटामिन सी के भरपूर स्त्रोत हैं। आंवले के हरे फलों को आचार बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है। आंवले से कई तरह के उत्पाद जैसे कि शैंपू, बालों का तेल, डाई, टूथ पाउडर और चेहरे पर लगाने के लिए क्रीम आदि बनाए जाते हैं। इस फसल के सख्तपन के कारण इसे कई किस्म की मिट्टी में उगाया जा सकता है। इस फसल के लिए मिट्टी का पीएच 6.5—9.5 होना चाहिए। यह फसल भारी मिट्टी में ना उगाएं।

सिफारिश की गई किस्में

बलवंत — यह अगेती किस्म है और नवंबर के मध्य में पक जाती है। इसके फल चपटे गोल और मध्यम आकार के होते हैं। इसकी औसतन उपज 121 किलो प्रति पौधा होती है।

नीलम — यह दरमियानी किस्म नवंबर के आखिर में पकती है। इसके फल मध्यम से बड़े आकार के और त्रिकोणी आकार के होते हैं। इसकी औसतन उपज 121 किलो प्रति पौधा होती है।

कंचन — यह पिछेती किस्म है और दिसंबर के मध्य में पकती है। इसकी उपज 111 किलो प्रति पौधा होती है।

पौधे तैयार करने — जनवरी—फरवरी महीने में देसी आंवले के फल इक्ट्ठे करके मार्च के पहले पखवाड़े में बीजों को बो देना चाहिए। आंवले के पौधे पैच बडिंग के द्वारा तैयार किए जाते है और पौधे 4—5 वर्षों में फल देना शुरू कर देते हैं।

पौधे लगाना — आंवले के पौधे फरवरी—मार्च और अगस्त—दिसंबर में लगाए जाते हैं। पौधे लगाने के लिए 1×1 मीटर आकार के गड्ढे खोदकर मिट्टी और रूड़ी बराबर मात्रा में मिलाकर भर देने चाहिए। गड्ढे भरने के समय ज़मीन से थोड़े से ऊंचे रखने चाहिए। पानी लगाने के बाद गड्ढों की मिट्टी बैठ जाती है। और इन्हें फिर से भरकर पौधे लगा देने चाहिए। कतार से कतार और पौधे से पौधे का फासला 7.5 x 7.5 मीटर रखना चाहिए। इसकी अच्छी उपज लेने के लिए कम से कम दो किस्मों के पौधे लगाने ज़रूरी होते हैं।

खादें — ज़मीन की तैयारी के समय मिट्टी में 10 किलो रूड़ी की खाद अच्छी तरह मिलायें। खेत में नाइट्रोजन 100 ग्राम, फास्फोरस 50 ग्राम और पोटाशियम 100 ग्राम प्रति पौधा डालें। खादें एक वर्ष के पौधे को डालें और 10 वर्ष तक खाद की मात्रा बढ़ाते रहें। फास्फोरस की पूरी और पोटाशियम और नाइट्रोजन आधी मात्रा शुरूआती खाद के तौर पर जनवरी—फरवरी के महीने में डालें। बाकी बची आधी खुराक अगस्त महीने में डालें। बोरोन और ज़िंक सल्फेट 100—500 ग्राम, सोडियम की ज्यादा मात्रा वाली मिट्टी में पौधे की उम्र और सेहत मुताबिक डालें।

सिंचाई — गर्मियों में सिंचाई 15 दिनों के फासले पर करें और सर्दियों में अक्तूबर—दिसंबर महीने में हर रोज़ तुपका सिंचाई के द्वारा 25—30 लीटर पानी प्रति पौधा दें। मॉनसून वाले मौसम में सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती। फूल निकलने के समय सिंचाई ना करें।

फसल की कटाई — बिजाई के 7—8 वर्ष बाद पौधे उपज देना शुरू कर देते हैं। फरवरी महीने में फल हरे हों और ज्यादा से ज्यादा विटामिन सी की मात्रा होने पर तुड़ाई की जाती है। तुड़ाई पौधे को ज़ोर— ज़ोर से हिलाकर की जाती है। जब फल पूरी तरह पक जाते हैं तो इनका रंग हल्का हरा पीला हो जाता है। नए उत्पाद बनाने के लिए और बीजों की प्राप्ति के लिए पके हुए फल प्रयोग करें।

 

कृषि और पशुपालन के बारे में अधिक जानकारी के लिए अपनी खेती एप्प डाउनलोड करें - एंड्राइड, आईफ़ोन