• इस महीने में तापमान अधिक होने के कारण पशुओं में डीहाइड्रेशन (पानी की कमी), शरीर में नमक की कमी, भूख कम लगना और उत्पादन में कमी आदि समस्याएं आती हैं।
• बोझ खींचने वाले पशुओं को दोपहर से शाम 4 बजे तक छांव वाली और हवादार जगह पर रखें।
• पशुओं के लिए पानी का विशेष तौर पर प्रबंध करना चाहिए। पानी वाली खुरलियां साफ रखें और दिन में कम से कम 4 बार पानी ज़रूर पिलाएं।
• गर्मी के कारण कुछ मादा पशु उत्तेजित हो जाते हैं, इसका प्रभाव रात के समय अधिक देखा जा सकता है। इसलिए पशु पालकों को पशुओं का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
• मैसटाइटिस (थनैला रोग) के लक्षण दिखें तो तुरंत इसका इलाज करवायें।
• कटड़ों या बछड़ों के एंटरोटॉक्सीमिया और शीप पॉक्स का टीकाकरण करवाना चाहिए।
• ब्याने के समय (6 महीने से अधिक के गर्भकाल के समय) पशुओं को अधिक फीड देनी चाहिए।
• इस महीने के दौरान चारागाहों में चारे की उपलब्धता कम हो जाती है और आम पशु का पोषण मॉनसून की शुरूआत तक कम रहता है। ऐसे समय में शरीर में से नमक और विशेष कर फास्फोरस की मात्रा कम हो जाती है, जिस कारण पशुओं को ‘पिका’ नाम की बीमारी लग जाती है। इसलिए पशुओं को खनिजों के ब्लॉक में नमक का घोल मिलाकर खिलायें।
• सामाजिक प्रयत्नों के माध्यम से ये सुनिश्चित बनाएं कि मृत पशुओं के शरीर को नियमित चरने वाले स्थानों पर ना गिराया जाये।
• पशुओं के मृत शरीर गिराने वाली जगह की घेराबंदी कर लेनी चाहिए, ताकि और पशु इसे ना खा सकें, जिससे बोटूलिज़म नाम की बीमारी हो सकती है, जो ला–इलाज बीमारी है और मौत का कारण बनती है।
• मक्की, बाजरा और जवार जैसी चारे वाली फसलों की कटाई 45-50 दिनों के बाद करें।
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