मीट के लिए मुर्गीपालन, ऐसे कीजिये शुरू

आज भारत में ब्रायलर व्यापार बहुत तेजी से गति कर रहा है।यह कम समय में अधिक मुनाफा कमाने के लिए एक अच्छा व्यवसाय है। ब्रायलर पक्षी नर और मादा जाती के कुकुट (मुर्गे-मुर्गियां) हैं। जिनका शारीरिक भार 6 सप्ताह की आयु में 2 किलो के आसपास हो जाता है तथा उनको मांस के लिए बेच दिया जाता है।ब्रायलर पालन की सफलता इन मुख्य कार्यों पर निर्भर करती है।

फार्म के लिए जगह का चयन

1.जगह समतल तथा ऊंचाई पर हो जिससे बारिश का पानी फार्म में न जा सके।

2.बिजली पानी आदि की सुविधा सही रूप से उपलब्ध हो।

3.चूज़े, दाना, दवाइयां खरीदने तथा ब्रायलर बेचने के लिए बाजार उपलब्ध हो।

4.फार्म मुख्य सड़क से ज्यादा दूर न हो जिससे लोगों का और वहां का आना जाना सही तरह से हो सके।

5.ब्रायलर फार्म हमेशा पूर्व पश्चिम दिशा में होने चाहिए।

अच्छी किस्म/जाति के चूज़े

मुर्गीपालकों को एक दिन की आयु के चूज़े ही खरीदने चाहिए। चूज़े मान्यता प्राप्त हेचरी से खरीदें। अगर चूज़ों की किस्म घटिया होगी तो वह अधिक दाना खाकर भी ज्यादा समय में उतना भार प्राप्त नहीं कर पाएंगे जितना अच्छी नस्ल के चूज़े कम दाना खाकर कम समय में कर लेते है।

ब्रायलर पक्षियों का पालन-पोषण

1.ब्रायलर पालन के लिए सबसे अच्छी विधि है एक साथ अंदर एक साथ बाहर अर्थात “आल इन आल आउट” सिस्टम जिसके अंतर्गत एक दिन की आयु से आरंभ करके उन्हें 2 किलोग्राम के पूर्ण ब्रायलरों में विकसित करके एक साथ बिक्री के लिए 6 सप्ताह की आयु में बाजार में बेचा जा सकता है। जिसके बाद सफाई व नयी खेप के लिए ब्रायलर घर को तैयार करने का समय मिल जाता है। मुर्गीपालक को हेचरी से चूज़े खरीदने का समयबद्ध प्रोग्राम इस तरह निश्चित करना चाहिए जिससे वह हर महीने दसवें या पन्द्रवें दिन या एक महीने के अंतराल पर ब्रायलर खरीद या बेच सकें। समय के अंतराल की अवधि उसे ब्रायलरों की मांग पर निर्धारित करनी होगी। ऐसे उत्पादन चक्र में सुचारु प्रबंध व सदृढ़ बाजार व्यवस्था का होना पहली शर्त है। ब्रॉयलरों के पालन के लिए उचित क्षेत्रफल (जगह) आहार तथा प्रबंध आदि की व्यवस्था करनी चाहिए नहीं तो अच्छा परिणाम नहीं मिलेगा।

ब्रायलर पालन में जरूरी हिदायतें

1.चूज़े हमेशा विश्वसनीय हेचरी से खरीदें।

2.चूज़ों को शुरू से पहले सप्ताह ब्रूडर के नीचे 95 डिग्री फार्नहाइट का तापमान दें। उसके बाद प्रति सप्ताह 5 डिग्री फार्नहाइट से तापमान कम करते रहें।

3.चूज़ों को प्रतिदिन 23.5 घंटे प्रकाश तथा आधा घंटा अँधेरे में रखना चाहिए ताकि चूज़े अँधेरा होने पर भी न डरें।

4.ताजे व सवच्छ पानी तथा संतुलित आहार का हर समय प्रबंध रखें।

5.आयु के अनुसार मुर्गीघर में निर्धारित स्थान दें (0-3 सप्ताह तक 1/2 वर्ग फुट तथा फिर 1 वर्ग फुट प्रति ब्रायलर)

6.ब्रायलर फार्मिंग में 3 प्रकार के दाने की आवश्यकता होती है। यह दाना ब्रायलर चूज़ों के उम्र और वजन के अनुसार दिया जाता है।
*प्री स्टार्टर (0-7 दिन)
*स्टार्टर (8-21 दिन)
*फिनिशर (22 दिन से मुर्गों की बिक्री तक)

फार्म का लेखा जोखा

किसानो में यह एक बड़ी ही दुर्भाग्यपूर्ण प्रवृत्ति है कि वे अपने प्रोजेक्ट बिना किसी विवरण रिकॉर्ड के चलाते हैं। फार्म का लेखा जोखा रखना न केवल लागत व आयु आदि को जानने बल्कि उत्पादन के परिणामों को जानने और उन्हें उन्नत करके सुधारने के लिए और लाभ को बढ़ाने के लिए भी आवश्यक है। मुख्य विवरण आहार की खपत, आहार (अनुपात) दवाइयां व मृत्यु दर है। उचित लाभ कमाने के लिए ब्रायलर्ज़ के निम्न समान्य गुण आवश्यक हैं।

छठे सप्ताह तक प्रति ब्रायलर शारीरिक भार  – 2 किलो
एक किलो भार प्राप्ति के लिए आहार खपत – 1.8 किलो
छः सप्ताह तक मृत्यु दर – <4 प्रतिशत

पशु उत्पादन प्रबंधन विभाग
हिसार, हरियाणा

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