अक्सर यह देखा गया है कि कुछ भैंस स्वस्थ होते हुए भी प्रजनन के योग्य नहीं होती। इसका कारण पशु में जनन संबंधी रोगों का होना है। जिनके लक्षण साफ़ दिखाई नहीं देते। अतः किसानो को प्रजनन संबंधी जानकारी होना बहुत आवशयक है। पशुओं में जनन संबंधी रोगों के मुख्या कारण निमिलिखित हैं:
कारण:
1.कुछ पशुओं में पैतृक कारणों से बांझपन की समस्या पीढ़ी दर पीढ़ी चलती रहती है।
2.इनमे अंडाशय या अंड़नाल का न होना, बच्चेदानी का न होना या छोटा होना, बच्चेदानी का मुंह बंद होना प्रमुख कारण है। इन रोगों का निवारण बहुत कठिन है।
3.हारमोन ( जो शरीर के अंदर बनते हैं) की उचित मात्रा न होने के कारण, पशुओं का गर्मी में आना, गर्भ धारण, प्रसव व् पुनः हीट में आना प्रभावित होता है।
4.कुछ संक्रामक रोग जैसे ब्रुसलोसिस आदि बीमारी होने के कारण 3 से 8 महीने के भ्रूण का कभी भी गर्भपात हो सकता है।
5.बचपन से कुपोषण के कारण कुछ पशु अधिक उम्र के होने पर भी गर्मी में नहीं आते।
6.कुछ पशु प्रसव के समय बच्चेदानी में घाव यां बच्चेदानी में जेर के सड़ने के कारण पुनः हीट में नहीं आते।
7.कुछ पशुओं में अंड़नाल यां अंडाशय में खराबी यां बच्चेदानी में रोग होने के कारण गाभिन करवाने पर भी गर्भ नहीं ठहरता और ये बार बार गर्मी में आते रहते हैं।
8.इसका एक कारण झोटे/ सांड के वीर्य में खराबी भी हो सकता है।
निवारण:
1.पशुपालक थोड़ी सी समझ से उपरलिखित कारणों का निवारण अपने आप कर सकते हैं।
2.बचपन से ही पशुओं को संतुलित आहार दें। इसके लिए हरा चारा खनिज मिश्रण व् विटामिन युक्त आहार खिलाएं जिससे कुपोषण संबंधी रोग पशुओं में न आ सके।
3.पशु को हीट में आने पर उचित समय रहते गाभिन करवाएं। भैंस औसतन 12-1 घंटे हीट में रहती है। अतः हीट के मध्य में ( सुबह हीट में आयी भैंस को शाम को और शाम को हीट में आयी भैंस को सुबह) गाभिन करवाएं।
4.एक सांड से बार बार गाभिन कराने से पशु गाभिन न हो तो सांड बदल दें।
5.किसी संक्रामक रोग के कारण गर्भपात हो गया हो तो भ्रूण को किसी गहरे गड्ढे में चुना डालकर दबा दें यां जला दें।
6.अनुभवहीन एवं अस्वच्छ व्यक्ति से भैंस की बच्चेदानी की जाँच यां गर्भदान न करवाएं।
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