मुर्गियों में प्रजनन की प्रक्रिया एवम्‌ उप नस्ल कैसे तैयार करें

जनन जीवों कीं एक जैविक क्रिया है जिसमें नर व मादा के सह्वास के फल स्वरूप नये जीव की उत्पत्ति होती है।

नर के शुक्राणु तथा मादा के अंडाणु के मिलने पर निशेचन होता है जिससे भ्रूण बनना है जो पशु के गर्भाशय में एक निश्चित समय तक रह्कर मां से पोषण प्राप्त कर धीरे- धीरे विकसित होकर नये जीव के रूप में जन्म लेता है।

नर प्रजनन तंत्र
नरों में प्रजनन तंत्र निम्न अंगों से बना होता है:
अण्ड कोष (२), एपेडिडीमिस(२), वास डिफेरेंस(२), पैपिला, कोपुलेटरि अंग
क्लोएका : यह मुर्गियों के आहार नाल का अंतिम छोर होता है जिसमें से आहार नाल, जनन नाल एवं मूत्र नाल के अंतिम उत्पाद गुज़रते हैं।

पैपिला: यह अंग वास डिफरेंस के अंत पर एवं क्लोएका के आधार वाले स्थान पर होता है पैपिला के माध्यम से सीमेन मादा के क्लोएका में त्यागा जाता है।

फेलस: यह एक अवशेषी कपोलट्री अंग होता है जो सीमेन को मादा में संचयित करने में सहायता करता है।

मादा प्रजनन तंत्र

ओवरी, ओवीडक्ट, क्लोएका

ओवरी: ओवम का बनना

इन्फैन्डीबुलम: ओवरी से योक? को ग्रहण करना

मैगनम: सफ़ेद गाढ़ा द्रव्य बनाना 3 घंटे बाद

इस्थमस: योक के आसपास झिल्लियों का निर्माण 1 ¼ घंटे बाद

यूटेरस: पतली सफ़ेद एवं बाहरी सफ़ेद कवच का निर्माण 20 घंटे बाद

वेजाइना: पूर्ण रूप से तैयार अंडे का संग्रहण

कुल : 25-27 घंटे

क्लोएका : यह मुर्गियों के आहार नाल का अंतिम छोर होता है जिसमें से आहार नाल, जनन नाल एवं मूत्र नाल के अंतिम उत्पाद गुज़रते हैं।

पैपिला: यह अंग वास डिफरेंस के अंत पर एवं क्लोएका के आधार वाले स्थान पर होता है पैपिला के माध्यम से सीमेन मादा के क्लोएका में त्यागा जाता है।

फेलस: यह एक अवशेषी कपोलट्री अंग होता है जो सीमेन को मादा में संचयित करने में सहायता करता है।

egg

नया जीव बनने यानी निषेचन की प्रक्रिया तभी पूर्ण होगी जब अंडाणु अंडाशय से बाहर निकलते ही तुरंत शुक्राणु से मिल जाए, ऐसी स्थिति में भ्रूण बनता है।

अगर निषेचन ना भी हो तब भी अंडाणु अपना सफर पूरा करता है एवं अनिषेचित अंडे के रूप में मुर्गी के शरीर से बाहर निकलता है।

मुर्गियों में संसर्ग/मैटिंग की प्रक्रिया

मेटिंग: नर एवं मादा का आपस में मिलना जिससे कि मादा निषेचन युक्त अंडे पैदा कर सके।

  • नर कितनी मादाओं से मेटिंग कर सकता है ये उसकी नस्ल, शरीर का भार, मौसम, उम्र, शारीरिक क्षमता आदि पर निर्भर करता है। जैसे कि लेग हॉर्न मुर्गे में रोड आइसलैंड की तुलना में अधिक मादा के साथ रखा जा सकता है।
  • जवान उम्र के कोकरेल में अधिक आयु से अधिक क्षमता होती है।
  • बसंत ऋतू में बेहतर मैटिंग होती है।
  • मैटिंग के समय मुर्गियों में व्याहारिक परिवर्तन देखे जाते हैं।
    मैटिंग की शुरुआत नर के अनुरंजन/ कोर्टशिप व्यवहार से होती है, इसमें नर एक पंख निचे और झुकाता है एवं एक परिमंडल में नृत्य करने लगता है एवं मादा सर एवं पुरे शरीर को नीचे की और दुबकने लगती है ताकि वह नर को ग्रहण कर सके अब नर मादा पर चढ़ता है एवं उसकी कलगी को, गर्दन के पंखों इत्यादि को जकड लेता है।
  • एक और व्यवहार में नर मादा की और दौड़ता है और मादा की पीठ पर चढ़कर मैटिंग को पूर्ण करता है।
    नर अंत में अपनी पूँछ को मादा की पूँछ की बगल में रखकर अपनी पूँछ के पंखों को फैलाता है जिससे की नर मादा की क्लोएका संपर्क में आती है इसी समय नर मादा की वेजाइना में शुक्राणुओं को छोड़ देता है।
  • नर में एक छोटा फेलस होता है जो लिम्फ से भर जाता है एवं एक तरह से मैथुन करने वाला अंग बना लेता है।
  • यह मैथुन वाला अंग अवशेषी होता है एवं प्रयोगात्मक रूप से मादा वेजाइना को बहिरवलित करती है जिससे की सीमेन औविडक्ट में आसानी से चला जाता है।

मैटिंग के व्यहार को जानने की आवश्यकता

फ्लॉक का उपजाऊपन अच्छा रहेगा, औसत रहेगा या खराब रहेगा ।

मैटिंग व्यवहार देखने का सबसे अच्छा समय

सुबह सुबह
देर दोपहर

मुर्गियों में संसर्ग/मैटिंग की प्रक्रिया

मेटिंग के प्रकार

पेन मेटिंग: १० मुर्गियां+एक मुर्गा, मेटिंग के लिए एक पेन में साथ में रखे जाते हैं।

फ्लॉक मेटिंग: यहां अधिक संख्या में मुर्गियों को मुर्गों के साथ रखा जाता है, इसमें भी १० मुर्गियां+एक मुर्गा के आधार पर ही रखा जाता है।

कमियां: नर अधिक होने से आपस में लड़ाई करते हैं।

अंडे किस नर के हैं यह नहीं पता लगाया जा सकता।

स्टड मेटिंग : इसमें मुर्गियों को बारी बारी से एक मुर्गे के साथ रखा जाता है।

अल्टरनेट नर: इसमें २ नरों का उपयोग किया जाता है परन्तु एक दिन में पुरे दिन के लिए एक मुर्गे को रखा जाता है एवं अगले दिन दूसरे मुर्गे से काम लिया जाता है।

  • नर एक समय में १०० मिलियन से ५ बिलियन तक शुक्राणु निषेचित करते हैं।
  • सीमेन शुरू में 1 मिली एवं धीरे से 0.५ मिली होने लगता है।
  • एक नर एक दिन में १० से ३० बार तक मैटिंग कर सकता है।

उप नस्ल तैयार करना

नस्ल: एक ही प्रजाति के पशु जो विशेष लक्षणों वाले हो एवं शरीर में समान एवं आकार में समान हो।

वैरायटी: किसी नस्ल का सब डिवीज़न होता है जिन्हें रंग या कलंगी के आधार पर पहचाना जाता हैं।

उप नस्ल: किसी नस्ल का लघु परिवर्तन रूप या द्वितीय नस्ल

क्रॉस प्रजनन में अधिक उत्पादन पैदा करने के लिए पेन मैटिंग का प्रयोग किया जाता है।

देसी नस्लों में क्रॉस प्रजनन कराने के निम्नलिखित लाभ हैं:

  • कम चारे पर देसी नस्लों से अधिक मॉस
  • कम चारे पर देसी नस्लों से उतने ही अंडे
  • वाणिज्यिक चिक उत्पादन के लिए बौने ब्रायलर जनक उत्पन्न करना
  • गर्मी सहन करने वाली मुर्गियों का विकास
  • देखभाल एवं रख रखाव व्यय काम लगना

सिलेक्शन: जनसंख्या में कुछ विशेष को चुना जाता है जिन्हें आगे पीढ़ियां बनाने में काम में लाया जा सके।

वैयक्तिक सिलेक्शन: किसी वैयक्तिक विशेष को उसके बाहरी लक्षणों के आधार पर चुना जाता है।

पेडिग्री सिलेक्शन: पूर्वजों के रिकॉर्ड के आधार पर चुना जाता है।

फॅमिली सिलेक्शन: पूरी फॅमिली की परफॉरमेंस के आधार पर चुना जाता है।

प्रोजेनी सिलेक्शन: प्रोजेनी की परफॉरमेंस के आधार पर चुना जाता है।

क्रॉस ब्रीडिंग: दो शुद्ध गुणों वाली किस्मों को आपस में क्रॉस करवाना जिससे की दोनों नस्लों के गन मिल सके।

कारी श्यामा (कडकनाथ × केरी रेड)

कालामासी: काले मांस (फ्लैश) वाला मुर्गा

  • पुराने मुर्गे का रंग नीले से काले के बीच होता है जिसमें पीठ पर गहरी धारियां होती हैं।
  • इसका मांस और अंडे प्रोटीन (मांस में 25-47 प्रतिशत) तथा लौह एक प्रचुर स्रोत माना जाता है, वसा और मांस में रेशा कम।
  • 20 सप्ताह में शरीर वजन (ग्राम)- 920
  • यौन परिपक्वता में आयु (दिन)- 180
  • वार्षिक अंडा उत्पादन (संख्या)- 210
  • 40 सप्ताह में अंडे का वजन (ग्राम)- 49
  • कारी निर्भीक (एसील × केरी रेड)
  • एसील को अपनी तीक्ष्णता, शक्ति, मैजेस्टिक गेट या कुत्ते से लड़ने की गुणवत्ता के लिए जाना जाता है।
  • इस नस्ल का गृह आंध्र प्रदेश माना जाता है।
  • इन्हें शौकीन लोगों और पूरे देश में मुर्गे की लड़ाई-शो से जुड़े हुए लोगों द्वारा पाला जाता है।
  • बीस सप्ताह में ही इसका वजन 1847 ग्राम हो जाता है
  • यौन परिपक्वता की आयु (दिन) 196 दिन है।
  • वार्षिक अंडा उत्पादन (संख्या)- 198-200
  • हितकारी (भारतीय देसी मुर्गी नेकेडनेक  × विदेशी मुर्गी केरी रेड )
  • नैक्ड नैक परस्पर बड़े शरीर के साथ-साथ लम्बी गोलीय गर्दन वाला होता है, पक्षी की गर्दन पूरी नंगी या गालथैली (क्रॉप) के ऊपर गर्दन के सामने पंखों के सिर्फ टफ दिखाई देते हैं।
  • आतंरिक गर्मीं निकालने में सहायक
  • मूल आवास :केरल का त्रिवेन्द्रम क्षेत्र
  • गर्मी में मृत्युदर कम
  • 20 सप्ताह में शरीर का वजन (ग्राम)- 1005
  • यौन परिपक्वता में आयु (दिन)- 201
  • वार्षिक अंडा उत्पादन (संख्या)- 200
  • 40 सप्ताह में अंडे का वजन (ग्राम)- 54

उपकारी (देसी मुर्गी × केरी रेड)

  • यह विशिष्ट मुरदार-खोर (स्कैवइजिंग) प्रकार का पक्षी
  • उपकारी पक्षियों की चार किस्में उपलब्ध हैं जो विभिन्न कृषि मौसम स्थितियों के लिए अनुकूल है।

काडाकनाथ  X  केरी रैड

असील     X   केरी रैड

नैक्ड नैक  X    केरी रैड

फ्रिजल    X  केरी रैड

इस मुर्गी के शरीर से तेजी से गर्मी निकल जाती है जिस कारण इसे उषणकटिबंधीय जलवायु विशेषकर शुष्क क्षेत्रों में भी पाला जा सकता है।

  • यौन परिपक्वता की आयु 170-180 दिन
  • वार्षिक अंडा उत्पादन 165-180 अंडे
  • अंडे का आकार 52-55 ग्राम
  • अंडे का रंग भूरा होता है।
  • गिरिराज (देशी मुर्गी विदेशी सफ़ेद कलंगी वाली नश्ल)

ड्यूल पर्पस नस्ल

अन्य उच्च उत्पादन की शंकर नस्लें

IBL-80, B-77, MH-260, IBI-91, ILI-80, ILS-82, IBB-83

इनमें से IBL-80, ILS-82 एवं B-77प्रतिवर्ष 200 जबकि HH-260 एक वर्ष में 260 अंडे देती है।

लेयर्स 

कारी सोनाली लेयर (गोल्डन- 92)

  • 18 से 19 सप्ताह में प्रथम अंडा
  • 155 दिन में 50 प्रतिशत उत्पादन
  • व्यस्तम उत्पादन 27 से 29 सप्ताह
  • उत्पादन (96 प्रतिशत) तथा लेयर (94 प्रतिशत) की सहनीयता
  • व्यस्तम अंडा उत्पादन 90 प्रतिशत
  • 265 अंडों से ज्यादा 72 सप्ताह तक हैन-हाउस

अंडे का औसत आकार

ब्रायलर

  • कारीब्रो – विशाल( कारीब्रो-91)
  • दिवस होने पर वजन – 43 ग्राम
  • 6 सप्ताह में वजन – 1650 से 1700 ग्राम
  • 7 सप्ताह में वजन – 100 से 2200 ग्राम
  • ड्रैसिंग प्रतिशतः   75 प्रतिशत
  • सहनीय प्रतिशत – 97-98 प्रतिशत
  • 6 सप्ताह में आहार रूपांतरण अनुपातः 1.94 से 2.20

कारीब्रो-धनराजा (बहु-रंगीय)

  • दिवस होने पर वजन – 46 ग्राम
  • 6 सप्ताह में वजन – 1600 से 1650 ग्राम
  • 7 सप्ताह में वजन – 2000 से 2150 ग्राम
  • ड्रेसिंग प्रतिशतः   73 प्रतिशत
  • सहनीय प्रतिशत – 97-98 प्रतिशत
  • 6 सप्ताह में आहार रूपांतरण अनुपातः 1.90 से 2.10

कारीब्रो- मृत्युंजय (कारी नैक्ड नैक)

  • दिवस होने पर वजन – 42 ग्राम
  • 6 सप्ताह में वजन – 1650 से 1700 ग्राम
  • 7 सप्ताह में वजन – 200 से 2150 ग्राम
  • ड्रैसिंग प्रतिशतः   77 प्रतिशत
  • सहनीय प्रतिशत – 97-98 प्रतिशत
  • 6 सप्ताह में आहार रूपांतरण अनुपातः 1.9 से 2.0

डॉ. सौरभ राजवैद्य
पशु चिकित्सा सहायक शल्यग्य
7404673923

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