पंजाब में 70 प्रतिशत और 90 प्रतिशत धान की कंबाइन से कटाई की जाती है। कंबाइन से गेहूं की कटाई के बाद बची पराली से तूड़ी वाली कंबाइन से 80 प्रतिशत तूड़ी बनाई जाती है। जिसे पशुओं के चारे के तौर पर प्रयोग किया जाता है। पर धान की पराली में सिलिका की मात्रा ज्यादा होने के कारण इसे पशुओं के चारे के तौर पर प्रयोग नहीं किया जाता। पंजाब में हर वर्ष 210 लाख टन पराली पैदा होती है। धान की कटाई और गेहूं की बिजाई के बीच का समय कम होने के कारण और धान की पराली संभालने के लिए अनुकूल तरीके किसानों के पास ना होने के कारण किसान 80—85 प्रतिशत धान की पराली को आग लगाना आसान तरीका समझते हैं। खेतों में पराली को आग लगाने के कई नुकसान हैं जैसे कि — हवा का प्रदूषित होना (ग्रीन हाउस गैसों, मानवी सांस से संबंधित बीमारियां), मिट्टी में ज़रूरी जीवों का नष्ट होना, मिट्टी की सेहत का नुकसान और सड़कों पर खेतों के आस पास लगे वृक्षों का नुकसान। पराली को खेत में ही संभालना सबसे बढ़िया तरीका है। इसके लिए भी सुपर एस एम एस वाली कंबाइन से धान की कटाई के उपरांत गेहूं की हैपी सीडर से बिजाई सबसे बढ़िया, आसान और सस्ती तकनीक है। इससे गेहूं की बिजाई समय से की जा सकती है और इसकी उपज खेत की जोताई करके बोयी गेहूं के बराबर होती है। इस तरीके से बोयी हुई गेहूं की उपज पर पकने के समय अधिक गर्मी का असर कम होता है और फसल बारिश पड़ने और हवा चलने से गिरती भी कम है।
पराली का प्रयोग बिजली पैदा करने के लिए, गत्ता मिलों में, खुंब की काश्त के लिए, पैकिंग, पशुओं के लिए बैडिंग के तौर पर की जाती है। पराली को आग लगाने की समस्या का हल करने के लिए पंजाब खेतीबाड़ी यूनिवर्सिटी की तरफ से अलग अलग मशीनों की सिफारिश की गई है। इस पराली का प्रयोग फसलों में बिछाने के तौर पर भी किया जा सकता है। जिससे उपज तो बढ़ती ही है। बल्कि पानी की बचत होती है और ज़मीन की उपजाऊ शक्ति बढ़ती है।
धान की पराली से फास्फो कंपोस्ट भी तैयार की जा सकती है।
धान की पराली से कंपोस्ट में फास्फोरस की मात्रा बढ़ाने के लिए इसे फास्फोरस युक्त भी किया जाता है। कंपोस्ट में फास्फोरस की मात्रा बढ़ाने के लिए रॉक — फास्फेट का प्रयोग किया जाता है। रॉक — फास्फेट को अच्छी तरह पीसकर बारीक कर लेना चाहिए। इसका प्रयोग यूरिया और गोबर के घोल में डुबोने के बाद, बैडों पर पराली की तह बिछाते समय करनी चाहिए। इसके लिए 500 किलो पराली के ढेर के लिए 30 किलो रॉक फास्फेट हर तह के बीच में बराबर मात्रा में डाल दें। इसके बाद उपर्युक्त बतायी विधि का प्रयोग करें और यह खाद भी 80—90 दिनों में ही तैयार हो जाती है। धान की पराली से तैयार कंपोस्ट को रूड़ी की खाद की तरह ही किसी भी फसल के लिए प्रयोग किया जा सकता है। ज़मीन में कंपोस्ट के प्रयोग से ज़मीन के भौतिक, रासायनिक और जीवन गुणों में सुधार होता है।
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