बागों का श्रृंगार: गुलमोहर

रंग हमेशा इंसान को अपनी ओर आकर्षित करते हैं, परंतु यदि कहीं ये रंग कुदरत के द्वारा बिखेरे गए हों, तो मनुष्य का मंत्र मुग्ध होना लाज़मी है। अत्याधिक गर्मी में खिली हुई गुलमोहरें हमारी रूह को सुकून देती हैं और एहसास करवाती हैं कि खूबसूरत दृश्य ढूंढने के लिए राज्य या देश से बाहर जाने की जरूरत नहीं बल्कि कुदरत ने हमारे लिए धरती के इस टुकड़े पर ही रंगों की फुलकारी बना दी है। बागीचियों या हमारे आस – पास जब भी गुलमोहरें खिलती हैं तो कई लोगों के मन में सवाल खड़े होते हैं कि गुलमोहर के कौन – कौन से रंग के फूल खिलते हैं या फिर हमारे आस – पास या पंजाब में गुलमोहर की कितनी किस्में देखने को मिलती हैंं ऐसे सवालों के जवाब के तौर पर ही मैंने गुलमोहर के बारे में जानकारी सांझी करने का मन बनाया।

दोस्तों ! सबसे पहली किस्म जो हर एक को अपनी ओर आकर्षित किए बिना नहीं रह सकती वह है, लाल गुलामोहर जिसका वैज्ञानिक नाम Delonix Regia है और इसके गहरे लाल रंग के फूल जब खिलते हैं तो पूरा वृक्ष लाल संतरी फुलकारी की तरह लगता है। गुलमोहर का फूल दुनिया के पांच सबसे खूबसूरत फूलों में से एक गिना जाता है। हालांकि इसका नाम ज्यादातर लाल रंग के फूलों के तौर पर ही प्रचलित है। परंतु कुदरत ने लाल के साथ – साथ कई वृक्षों पर संतरी, बावा या कभी – कभी तो पीले रंग में भी यह किस्म खिली हुई नज़र आती है। गुलमोहर के अलावा इसे मोर फूल, आग वृक्ष या जंगल की आग आदि नामों से भी जाना जाता है। गुलमोहर के फर्न जैसे पत्ते पीले पड़ने शुरू होकर फरवरी—मार्च तक झड़ने के साथ ही मार्च के आखिरी दिनों में नए आने शुरू हो जाते हैं। लाल सिंधूरी पर किरमची रंग के फूल अप्रैल के आखिरी सप्ताह से शुरू होकर मई के महीने में पूरे यौवन पर पहुंच जाते हैं। पूरे यौवन पर खिली गुलमोहर को देखकर ही शायद प्रो. मोहन सिंह ने लिखा था :

गुलमोहर दा बूटा
खड़ा सुहावना
धुर पातालों आया
धरत प्राहुणा।

लाल गुलमोहर के बाद बारी आती है ‘नीली गुलमोहर’ की। जिसकी खूबसूरती भी किसी तरफ से कम नहीं होती। नीली गुलमोहर का वैज्ञानिक नाम जैकरंडा मैमोसीफोलिया है और इसके नीले जामुनी फूलों का जवाब नहीं। ब्राज़ील मूल के इस वृक्ष को भारत में पहली बार कलकत्ता बोटैनीकल गार्डन में सन 1841 के दौरान लाया गया था, जो अपनी खुबसूरत दिखावट के तौर पर पूरे देश में पहुंच गया। नीली गुलमोहर के फूल सुबह—सुबह सूर्य चढ़ने के साथ ही खिल उठते हैं और इस वृक्ष के फूलों को यदि रास्तों के साथ – साथ कतारों में लगाया जाए तो फूल खिलने के समय दृश्य देखने योग्य होता है। हमारे प्रांत में रंगों के मुताबिक वृक्ष पौधों की योजनाबंदी चयनित लोग ही करते हैं। यदि बड़े स्थानों या विशेष कर गांव को आते जाते रास्तों पर रंगों के मुताबिक वृक्ष लगाए जाएं तो सोने पर सुहागे वाली बात हो सकती है। खुशी की बात तो यह है कि अब गांव में से ही हमारे पार्क बनाने के बारे में अक्सर सवाल आते रहते हैं।

‘पीली गुलमोहर’ भी अपने आप में विशेष वृक्ष है। कुल लोग तो लाल गुलमोहर के पीले रंग को भी पीली गुलमोहर कह देते हैं। परंतु इसके नाम का ज्यादा संबंध तांब फली नाम के वृक्ष से है। जिसका वैज्ञानिक नाम Peltophorum Pterocarpum है। इसके पत्ते दो पंखी और कुछ कुछ गुलमोहर जैसे होते हैं। पीली गुलमोहर मौसम के मिजाज़ के हिसाब से वर्ष में कई बार खिली नज़र आती है। परंतु मुख्य तौर पर अप्रैल—मई—जून महीनों के दौरान ज्यादा फूल लगते हैं। झुंड में लगे वृक्षों के नीचे अक्सर धरती पीले रंग में रंगी हुई नज़र आती है। यह वृक्ष फूलों के साथ – साथ छांव का काम भी देता है। पीली गुलमोहर को तांबा फली के नाम से इस कारण जाना जाता है, क्योंकि इसे लगने वाले फूल जो कि फलियों के रूप में होते हैं, उनका रंग पकने के उपरांत तांबे जैसा या जंगाल की तरह प्रतीत होता है। इसकी कांट—छांट करके आवश्यक ऊंचाई तक सीमित रखकर सुंदर छत्र भी तैयार किया जा सकता है। समस्या वास्तव में यह है कि हमारी ज्यादातर नर्सरियों में ऐसे वृक्षों की उपलब्धता कम होती है और लोगों का रूझान भी कम देखने को मिलता है।

इससे पहले हम लाल, नीली और पीली गुलमोहर के बारे में चर्चा कर चुके हैं। अब बारी आती है ‘गुलमोहरी’ की। गुलमोहरी बड़ा वृक्ष ना होकर बल्कि इसे छोटा झाड़ीनुमा पौधा कह सकते है। इसके फूल संतरी—लाल, पीले और गुलाबी रंगों वाले होते हैं। हालांकि इसके गुलाबी रंग के फूलों वाली किस्म देखने को बहुत कम मिलती है। गुलमोहरी को अन्य क्षेत्रों या देशों में मोर फूल, रैड बर्ड ऊंचाई पैराडाईज़ या प्राइड आफ बारबाडोज़ आदि नामों से जाना जाता है। गुलमोहरी का वैज्ञानिक नाम Caesalpinia Pulcherrima है और यह गर्म ऋतु से लेकर बरसात ऋतु तक हसीन रंगों के फूलों से लदी हुई नज़र आती है। स्कूलों—कॉलेजों या सांझी सामाजिक और धार्मिक संस्थाओं में जगह अक्सर खुली होती है और ऐसे पौधे बाखूबी लगाए जा सकते होते हैं। दोस्तों हमारी बागीचियों में हम अनेकों किस्मों के वृक्ष पौधे अक्सर लगाते हैं। पिछले कुछ वर्षों में बागीचियां तो बहुत खूबसूरत बनानी शुरू कर दी, परंतु हम उनमें कुदरती रंग भरने भूलते जा रहे हैं। कहने का भाव यह है कि पौधों का चयन करते समय ज्यादा तरज़ीह फाइक्स या पाम जाति को ही दी जाने लगी है। हालांकि हमें कुदरत ने इतने ज्यादा सौम्य और हसीन रंग दिए हैं, जिनमें बागीची ही नहीं बल्कि पूरी धरती श्रृंगारित नज़र आती है। इसलिए कोशिश करें कि धरती पर कुदरती रंगों की फुलकारी बनाएं और भगवान के रंग में रंग जाएं।

बलविंदर सिंह लक्खेवाली
+91-98142-39041

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