पशुओं के गर्भधारण के बाद साथ की साथ उनकी देख रेख और खुराकी प्रबंध का काम शुरू हो जाता है। कई बार भैंसों और गायों में गर्भ या उसमें पल रहे बच्चे का जीवित या मृत गर्भ के किसी भी महीने में निकाल देना जो कि जीवित रहने के काबिल ना हो। इसे तू जाना कहते हैं। एक ऐसी बीमारी है जो बरूसैला नाम के बैक्टीरिया के कारण होती है और इसे ब्रूसीलोसिस कहा जाता है। यह बीमारी भैंसों, गायों, भेड़ों और बकरियों में पायी जाती है। पर भैंसों और गायों में इसका सबसे ज्यादा नुकसान होता है। यह बीमारी बीमार जानवरों से इंसानों को भी लग जाती है। इसके मुख्य लक्ष्ण हैं कि जैसे गाभिनों में ब्याने के आखिरी महीनों में तू जाना और फिर जेर ना पड़ना और बच्चेदानी में सोजिश आना आदि। कई बार भैंसों/गायों की टांगों के जोड़ में भी सोजिश आ जाती है और उनमें पानी जैसा तरल पदार्थ भर जाता है।
इस बीमारी का बड़ा नुकसान बड़े में होता है जहां बहुत सारे गाभिन पशु एक समय में ही तू जाते हैं। जब कोई पशु तू जाता है तो इस बीमारी के जरासीम मरे हुए बच्चे के साथ बाहर आ जाते हैं और पशु के पिछले हिस्से और पूंछ से लगे रहते हैं। जब पशु पूंछ हिलाता है तो जरासीम के पास खड़े पशुओं के अंदर चले जाते हैं जिससे सभी पशु बीमार हो जाते हैं। इस बीमारी का पता करने के लिए दूध की जांच की जाती है जिसे रिंग मिल्क कहते हैं। दूध की जांच करने के बाद यदि पता लगे तो बीमार पशुओं का खून भी चैक किया जाता है और बीमार पशुओं को आसानी से बाहर निकाला जाता है।
कैसे करें इलाज ?
इस बीमारी का कोई पक्का इलाज नहीं है कुछ सावधानियां ही हैं जैसे कि शैड में सफाई और वैकसीन के टीके। मरे हुए बच्चे और जेर वगैरह को चूना डालकर किसी गहरे खड्ढे में डाल देना चाहिए। वैक्सीन का टीका कोटन स्ट्रेन 19 लगाना बहुत जरूरी है। यह वैक्सीन सिर्फ कटड़ियों और बछड़ियों में लगायी जाती है। वैक्सीन का टीका 4-8 महीने की उम्र तक लगाया जाता है और इसका असर पांचवे ब्यांत तक रहता है।
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