क्या कोई पौधा आपको तंदरूस्त बनाने के साथ—साथ आपकी उम्र भी बढ़ा सकता है
आम जानकारी
हरड़ का वृक्ष भारत में हर स्थान पर पाया जाता है। आमतौर पर इसका वृक्ष 60 से 80 फुट ऊंचा होता है। कहीं कहीं 100 फुट ऊंचे वृक्ष भी मिलते हैं तना मजबूत, लंबा, सीधा और मटमैली छाल वाला होता है। पत्ते 3 से 8 इंच लंबे, लगभग 2 इंच चौड़े,अड़ूसा के पत्तों जैसे चमकदार, अंडाकार, खुरदरे, नोकदार होते हैं। अप्रैल — मई में पुराने पत्ते झड़ जाते हैं और नए आ जाते हैं फूल छोटे—छोटे सफेद या हल्की पीले रंग के, तेल खुशबू वाले होते हैं। फल 1 से 2 इंच लंबे, अंडाकार, एक बीज वाले होते हैं गुठली बनने से पहले वृक्ष से गिरे कच्चे फल सूखने पर काले हो जाते हैं। उसे छोटी हरड़ (बाल हरड़) कहा जाता है। जो फल गुठली बनने के बाद, पर पूरी तरह पकने से पहले तोड़ लिया जाए तो उसे पीली हरड़ के नाम से जाना जाता है। वृक्ष पर पूरी तरह पकने के बाद जो फल तोड़े जाते हैं, उसे बड़ी हरड़ कहा जाता है। 15 ग्राम से अधिक भार वाली, भारी पुष्ट, बिना छाल वाली, पानी में डूब जाने वाली हरड़ को बढ़िया हरड़ माना जाता है।
अलग अलग भाषाओं में नाम
संस्कृत — हरीतकी | हिंदी — हरड़, ह्रड़ | मराठी — हिरड़ा, हरड़ा | गुजराती — हरड़े| बंगाली- हत्रकी | अंग्रेजी – माएरोबैलंस (Myrobalans) | लैटिन — टर्मीटेलिया केबुला
गुण:
- आयुर्वेद के अनुसार हरड़ में सिर्फ लवण रस को छोड़कर पांचों ही रस — मधु, कटु, कशाय और अम्ल पाए जाते हैंं यह स्वाद में कड़वी, गुण में हल्की, तासीर में गर्म, विपाक में मधुर, त्रिदोष को दूर करने वाली, उम्र बढ़ाने वाली, गर्मी दूर करने वाली, पाचनशील, पेशाब बढ़ाने वाली, गैस दूर करने वाली, आंखों की बीमारियों के लिए लाभदायक होती है।
- यह बहुत सारी बीमारियां जिनमें हिचकी, शूल, कीड़े, बवासीर, कब्ज, खांसी, सांस, बुखार, मलेरिया, अतिसार, पत्थरी, आंखों की बीमारियां, पीलिया और प्रमेह आदि में गुणकारी होती है।
- वैज्ञानिक तौर पर हरड़ के रासायनिक तत्वों का विश्लेषण करने से पता लगता है कि इसमें फल में चेंबूलीनिक एसिड 30 प्रतिशत, टैनिक एसिड 30 से 45 प्रतिशत, गैलिक एसिड, एंथ्राक्वीनिन जाति के ग्लाइकोसाइड, राल और रंजक पदार्थ पाए जाते हैं।
- ग्लाइकोसाइड्रिस कब्ज दूर करने में अहम भूमिका निभाता है। यह तत्व शरीर के सभी अंगों से अनचाहे पदार्थों को निकालकर शरीर को दुरूस्त बनाती है।
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