हमारे पर्यावरण को प्रदूषित करके हम कौन सी बुराई को मिटा रहे हैं ?

हर साल कितने रावण जलाये जाते हैं?

हर साल देश में कितने ही हजारों रावण जलाये जाते हैं, इससे यह समझ नहीं आता कि हम रावण का अंत कर रहे हैं यां प्रदुषण पैदा कर रहें हैं।अगर रावण के पुतले में पटाखों का इस्तेमाल ना किया जाए तो ज्यादा प्रदुषण नहीं होगा। लेकिन ज्यादातर पुतलों में तेज आवाज वाले पटाखों का इस्तेमाल किया जाता है , जो वायु प्रदूषण को बढ़ाने के लिए जिम्मेदार है।

वायु प्रदूषण पैदा करने लिए कितने करोड़ रूपये खर्च किये जाते हैं?

इस बात का कभी भी कोई शोधपूर्ण अध्ययन नहीं किया गया कि रावण, मेघनाद, कुंभकर्ण के पुतलों में कितने करोड़ रुपयों के पटाखे लगे और लगते हैं और उससे कितना वायु प्रदूषण होता है। कुछ साल पहले सामाजिक एकता के साथ शहर के एक-दो प्रमुख स्थानों पर बुराई के प्रतीक पुतलों का दहन होता था। लेकिन अब तो रामलीला और टी.वी. सिनेमा के बावजूद देश भर के लिए आकर्षण होता है। लेकिन ध्यान देने योग्य बात यह है कि अगर इस बात को धर्म से न जोड़ा जाए तो यह सब बिलकुल व्यर्थ है और हमारे पर्यावरण के लिए बहुत खतरनाक सिद्ध हो सकता है।

जहाँ विभिन्न संस्थाएं पर्यावरण को बचाने के लिए कार्य करती हैं और वायु को प्रदूषित होने से बचाने के लिए कई कानून भी बनाये गए हैं वहीँ हम इस बात को नजरअंदाज करते हुए एक तयोहार के नाम पर कई बिमारियों को आमंत्रण दे रहे हैं। देखा जाए तो केवल कुछ मिंटो के रोमांच के लिए वायु को प्रदूषित करना अनुचित है और इसका भारी हर्जाना हमें चुकाना पड़ सकता है।

हम क्या कर सकते हैं ?

कुछ प्रकार के वायु प्रदूषण प्राकृतिक कारणों से होते हैं जो मनुष्य के हाथों में नहीं हैं। रेगिस्तान में रेत के तूफान बढ़ रहे हैं, जंगलों में आग और घास के जलने से उत्पन्न धुंआ कुछ रसायनों को जन्म देते हैं जो वायु प्रदूषित करते हैं। प्रदूषण की उत्पत्ति किसी भी देश से हो सकती है लेकिन उसका प्रभाव हर जगह पड़ता है। पर जो कुछ कारक हमारे हाथ में हैं हम उन्हें तो रोक सकते हैं। एक जिम्मेवार नागरिक होने के नाते हमें इस वायु प्रदुषण को रोकने के लिए अपना योगदान जरूर देना चाहिए न कि परिस्थितियों के और खराब होने का इंतजार करना चाहिए।

 

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