गन्ना एक महत्तवपूर्ण फसल है जिसका 75 फीसदी प्रयोग चीनी बनाने के लिए किया जाता है। इसकी फसल तकरीबन 10—14 महीने खेत में रहती है और इस परअलग अलग समय पर कीड़े मकौड़ों और बीमारियों का हमला होता है। कीड़ों के हमले से गन्ने की उपज में 15—20 प्रतिशत कमी आती है। गन्ने में मुख्य कीड़े और उनकी रोकथाम नीचे दिए ढंग से की जा सकती है|
अगेती फोट का छेदक — यह सुंडी फसल के उगने के समय हमला करती है। यह सुंडी ज़मीन के नज़दीक तने में सुराख करती है और पौधे का सुखा देती है, जिससे गंदी गंध आती है। यह सुंडी आमतौर पर हल्की ज़मीनों और शुष्क वातावरण में मार्च से जून महीनों में हमला करता है। इसकी रोकथाम के लिए फसल अगेती बोनी चाहिए। बोने के समय क्लोरपाइरीफॉस 1 लीटर प्रति एकड़ को 100—150 लीटर पानी में मिलाकर गुल्लियों पर स्प्रे करें। यदि बिजाई के समय इस दवाई का प्रयोग ना किया हो तो इसका प्रयोग खड़ी फसल पर भी कर सकते हैं। सूखे हुए पौधों को नष्ट करें। हल्की सिंचाई करें और खेत को शुष्क होने से रोकें।
दीमक — बिजाई से पहले बीजों का उपचार करें। गुल्लियों को इमीडाक्लोप्रिड के घोल 4 मि.ली. प्रति 10 लीटर पानी में मिलाकर 2 मिनट में डुबोयें या बिजाई के समय क्लोरपाइरीफॉस 2 लीटर प्रति एकड़ की स्प्रे बीजों पर करें। यदि खड़ी फसल पर इसका हमला दिखे तो जड़ों के नज़दीक इमीडाक्लोप्रिड 60 मि.ली. प्रति 150 लीटर पानी या क्लोरपाइरीफॉस 1 लीटर प्रति 200 लीटर पानी में मिलाकर डालें।
सफेद सुण्डी — यह सुण्डी जड़ों पर हमला करती है। जिस कारण गन्ना खोखला हो जाता है और गिर जाता है। शुरू में इसका नुकसान कम होता है परंतु बाद में सारे खेत में आ जाता है। ये सुण्डियां बारिश पड़ने के बाद मिट्टी में से निकल कर नजदीक के वृक्षों में इक्ट्ठी हो जाती हैं और रात को इसके पत्ते खाती हैं। यह मिट्टी में अंडे देती हैं जो कि छोटी जड़ों को खाती हैं।
गन्ने की जड़ों में इमीडाक्लोप्रिड 4-6 मि.ली. को प्रति 10 लीटर पानी में मिला कर प्रयोग करें। फसल अगेती बोने से भी इसके नुकसान से बचा जा सकता है। बीजों का क्लोरपाइरीफॉस से उपचार करना चाहिए । इसके इलावा 4 किलो फोरेट या कार्बोफ्यूरॉन 13 किलो प्रति एकड़ को मिट्टी में मिलाएं। खेत में पानी खड़ा करके भी इस कीड़े को रोका जा सकता है। क्लोथाइनीडिन 40 ग्राम एकड़ को 400 लीटर पानी में मिलाकर डालें।
पायरिल्ला — इसका ज्यादा हमला उत्तरी भारत में पाया जाता है। बड़े कीड़े पत्ते के निचली तरफ से रस चूसते हैं। इससे पत्तों पर पीले सफेद रंग के धब्बे पड़ जाते हैं और पत्ते नष्ट हो जाते हैं। ये पत्तों पर शहद जैसा पदार्थ छोड़ते हैं। जिससे फंगस पैदा हो जाती है और पत्ते काले रंग के हो जाते हैं। नियमित फासले पर सफेद फूले हुए अंडों को इकट्ठा करके नष्ट कर दें। गंभीर हमला होने पर डाइमैथोएट या एसीफेट 1-1.5 मि.ली. को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
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