• जून के महीने में तापमान के बढ़ने से पशु बुखार, डीहाइड्रेशन, शरीर में नमक की कमी, भूख की कमी और उत्पादन में कमी के शिकार हो जाते हैं।
• मई के जैसे जून महीने में भी पशुओं को उच्च तापमान, धूप, गर्म और शुष्क हवाओं से बचाना चाहिए।
• पशुओं को गर्मी से बचाने के लिए उन्हें वृक्षों की छांव में रखें।
• यदि भेड़ से ऊन नहीं उतारी गई तो इस महीने में इस कार्य को किया जाना चाहिए।
• पशुओं का गलघोटू रोग और लंगड़ा बुखार से टीकाकरण करवाना चाहिए।
• सुबह, शाम या रात के शुरूआती समय के दौरान पशु को चरागाहों में चराया जाना चाहिए, इसके अलावा, उन्हें पर्याप्त मात्रा में पानी उपलब्ध कराया जाना चाहिए।
• पिका से प्रभावित पशुओं की डीवॉर्मिंग करवायी जानी चाहिए और उन्हें ऐसी फीड देनी चाहिए जिसमें आवश्यक बॉडी सॉल्ट का मिश्रण होता है और उनका इलाज करवाना चाहिए।
• पशुओं को विटामिन, खनिज और लवण युक्त फीड दी जानी चाहिए।
• गर्मियों में उगाए जाने वाले ज्वार में जहरीले तत्व होते हैं, जो पशुओं के लिए हानिकारक हो सकते हैं। पशुओं को ज्वार (अप्रैल में बिजाई और जून में कटाई) देने से पहले, उन्हें 2—3 बार पानी दिया जाना चाहिए।
• चारा घास की रोपाई के लिए खेत तैयार करें।
• एफ एम डी, गलघोटू, लंगड़ा बुखार, एंटरटॉक्सीमिया आदि से बचाव के लिए पशुओं को टीकाकरण करवाया जाना चाहिए।
• भेड़ों से ऊन उतारने के 21 दिन बाद, एक्टो परीजीवी से बचाने के लिए उनके शरीर पर कीटाणुनाशक का छिड़काव किया जाना चाहिए।
• यदि संभव हो तो उचित हवा संचार के लिए पशुओं के शेड में कूलर या एगज़्हौस्ट पंखे लगाएं।
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