coriander leaves

धनिये की फसल के लिए बीमारी नियंत्रण

धनिया एक वार्षिक हर्ब पौधा है जिसका रसोई में मसाले के तौर पर प्रयोग किया जाता है। इसके बीजों, तने और पत्तों का प्रयोग अलग अलग पकवानों को सजाने और स्वादिष्ट बनाने के लिए किया जाता है। इसके हरे पत्ते विटामिन सी का अच्छा स्त्रोत हैं और चटनी, सूप और सोसेज़ आदि बनाने के लिए प्रयोग किये जाते हैं। धनिये के अच्छी औषधीय विशेषताएं भी हैं। इसकी खेती मुख्यत: अक्तूबर-नवंबर महीने में की जाती है और कुछ आम बीमारियां हैं जो इस फसल की उपज को प्रभावित करती हैं। इसलिए हम आपको बताएंगे धनिये की फसल में पायी जाने वाली कुछ आम बीमारियों और उनके नियंत्रण के ढंगों के बारे में, जिसे किसान आसानी से अपने खेत में प्रयोग कर सकते हैं।

पाऊडरी मिल्डयू (पत्तों पर सफेद धब्बे): इस बीमारी से फसल पर 15-20 प्रतिशत तक नुकसान होता है। पत्तों की ऊपरी सतह पर सफेद पाउडर दिखाई देता है। जो कि बाद में तने और दानों पर दिखता है। पर्यावरण के अनुकूल होने पर रोग का प्रभाव अधिक हो जाता है जिससे दानों का आकार कम हो जाता है।

उपचार:

• बिजाई अक्तूबर महीने में करनी चाहिए।
• इस बीमारी की प्रतिरोधक किस्मों का प्रयोग किया जाना चाहिए जैसे Swati, CO 3 और IR 20
• 10-15 दिनों के अंतराल पर घुलनशील सल्फर या कैराथीन 0.2 प्रतिशत की स्प्रे 3 बार करें।
• फसल को पाऊडरी मिल्डयु से बचाने के लिए सल्फर के धूड़े 8-10 क्विंटल का प्रति एकड़ में बुरकाव किया जाना चाहिए।
• इस बीमारी को दूर करने के लिए बाविस्टिन 0.2 प्रतिशत की 2-3 बार स्प्रे करें|

विल्ट (सूखा): यह बीमारी ‘फ्यूजेरियम आक्सीस्पोरम कोरियन्डरी’ के कारण होती है। यह 50-100 प्रतिशत फसल का नुकसान करती है। इस बीमारी से पौधे ऊपर से सूखना प्रारंभ करके नीचे तक सूख कर गिर जाते हैं। यह कवक पौधे की जड़ों के द्वारा पूरे तने में फैलता है।

उपचार:
• बिजाई से पहले, ट्राईकोडरमा 4 ग्राम से प्रति किलो बीजों का उपचार किया जाना चाहिए।
• इस बीमारी की प्रतिरोधक किस्में जैसे CS 287, Sindhu, RCR 41 और G0-2 आदि का प्रयोग करना चाहिए।
• धनिये की खेती एक ही खेत में 3 वर्ष से ज्यादा ना करें।
• गर्मियों के मौसम में गहरी जोताई करनी चाहिए और इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि मिट्टी में नमी का स्तर अधिक ना हो।
• बीमारी रहित बीजों को बोना चाहिए।

स्टेम गाल (तने का गठिया रोग): जब भूमि में नमी की मात्रा अधिक और रात के तापमान में कमी और सुबह की ओस सहित दिन के तापमान में वृद्धि होने लगती है तब क्लेमाइडोस्पोर जमाव शुरू करते हैं जो तने के बाहरी भाग पर गांठ जैसी वृद्धि करते हैं और धीरे-धीरे पूरे तने, पत्तियों तथा फलों पर फैल जाते हैं। यह बीमारी देरी से बोयी गई फसलों पर अधिक दिखाई देती है और 15-25 प्रतिशत फसल की उपज का नुकसान करता है।

stem gall-hn

उपचार:
• बिजाई अक्तूबर महीने में की जानी चाहिए।
• बिजाई से पहले सल्फाथायोज़ोल या सल्फाहाइजीन या हैक्साकोनाज़ोल या प्रोपीकोनाज़ोल 250-1000 से बीजों का उपचार करें और इन खादों की 40-60 दिनों के बाद स्प्रे करने से इस बीमारी को दूर करने में मदद मिलती है।
• इस बीमारी की रोकथाम के लिए कार्बोक्सिन 0.1 प्रतिशत और कैप्टाफाल 0.2 प्रतिशत की चार बार स्प्रे की जानी चाहिए।
• इस बीमारी की प्रतिरोधक किस्में जैसे RCR 41, Karan, RCR 684, Pant Haritima और NRCS बोयी जानी चाहिए।

 

 

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