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पंचगव्य – पौधों की वृद्धि में प्राकृतिक सहायक

प्राचीन काल से ही भारत जैविक आधारित कृषि प्रधान देश रहा है और इसका उल्लेख हमारे ग्रंथों में भी किया गया है । पंचगव्य का अर्थ है पंच + गव्य (गाय से प्राप्त पांच पदार्थों का घोल) अर्थात यह गौमूत्र, गोबर, दूध, दही और घी से बनाया गया मिश्रण होता है। पुरातन समय में इसका उपयोग मिट्टी की उपजाऊ शक्ति बढ़ाने के साथ साथ पौधों में रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए किया जाता है।

विशेषतायें :

• भूमि में मित्र कीटों की संख्या में वृद्धि

• मिट्टी की उपजाऊ शक्ति में वृद्धि

• फसल उत्पादन में वृद्धि

• भूमि में हवा और नमी को बनाए रखना।

• फसल में रोग व कीटों का प्रभाव कम करना

• स्थानीय संसाधनों पर आधारित

• सरल एवं सस्ती तकनीक पर आधारित

पंचगव्य बनाने की विधि :

• पहले दिन 2.5 किलो गोबर व 1.5 लीटर गोमूत्र में 250 ग्राम देसी घी अच्छी तरह मिलाकर मटके में डालें व ढक्कन अच्छी तरह से बंद कर दें। अगले तीन दिन तक इसे रोज हाथ से हिलायें। और चौथे दिन सारी सामग्री को आपस में मिलाकर मटके में डालें व फिर से ढक्कन बंद कर दें।

• उसके बाद जब इसका खमीर बन जाये और खुशबू आने लगे तो समझ लें कि पंचगव्य तैयार है और इसके विपरीत अगर खटास भरी बदबू आए तो हिलाने की प्रक्रिया एक सप्ताह और बढ़ा दें। इस तरह पंचगव्य तैयार होता है।

• अब आप 250 ग्राम पंचगव्य को 10 लीटर पानी में मिलाकर किसी भी फसल पर स्प्रे कर सकते हैं।

• इसे 6 महीने के लिए प्रयोग किया जा सकता है। इस घोल को तैयार करने की औसतन लागत 70 रूपये प्रति लीटर है।

प्रयोग करने की विधि :

• पंचगव्य का प्रयोग अनाज,दालों और सब्जियों वाली फसलों पर किया जा सकता हैं

• स्प्रे के समय नमी का पर्याप्त मात्रा में होना आवश्यक है।

• बीजों की बिजाई से लेकर कटाई तक इसका उपयोग 25—30 दिन के अंतराल पर करें।

• प्रति एकड़ भूमि के लिए 20 लीटर पंचगव्य को 800 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।

बीज उपचार :

1 लीटर पंचगव्य के घोल में 500 ग्राम वर्मीकंपोस्ट मिलाकर बीजों पर छिड़काव करें और उसकी हल्की परत बीज पर चढ़ायें और 30 मिनट के लिए इन्हें छांव में रखें।

पौध के लिए :

• पौध को घोल में डुबोयें और फिर रोपाई के लिए प्रयोग करें।

• रोपाई या बिजाई के बाद 15—25 दिनों के अंतराल पर इसकी 3 बार लगातार स्प्रे करें।

सावधानियां :

• पंचगव्य का प्रयोग करते समय खेत में नमी का पर्याप्त मात्रा में होना आवश्यक है।

• एक खेत का पानी दूसरे खेतों में नहीं जाना चाहिए।

• इसकी स्प्रे सुबह 10 बजे से पहले तथा शाम को 3 बजे के बाद करनी चाहिए।

• पंचगव्य को छांव और ठंडे स्थान पर रखें।

• इस मिश्रण को टीन, स्टीन या तांबे के बर्तनों में ना रखें।

 

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