दालों के इन प्रोसेसिंग तरीकों से बड़ा सकते हैं आप अपना आमदन

प्रोसेसिंग तरीकों से बढ़ाएं दालों का उपयोग:

दालों को कई तरीके के प्रोसेस्ड भोजन पदार्थ जैसे कि ब्रेड, पास्ता, और कई तरह के स्नैक्स, बच्चों के भोजन और स्पोर्ट्स फ़ूड बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। प्रोसेसिंग की अलग अलग तकनीकें जैसे कि भिगो कर रखना, अंकुरण, पकाना, भूनना, और खमीरीकरण आदि इस्तेमाल करके दालों की पौष्टिकता को और बढ़ाया जा सकता है क्योंकि यह तकनीकें दालों में मिलने वाले ऐनजाइम्स की गतिविधियों को रोक कर प्रोटीन और खनिज पदार्थ जैसे कि लोहा और जिंक को शरीर में सोखने में आसान बना देती है।

भिगो कर रखना:

दालों को 1.5 फीसदी सोडियम थाईकार्बोनेट + 0.5 फीसदी सोडियम कार्बोनेट + 0.75 फीसदी सिट्रिक एसिड के घोल में भिगोने से दालों को पकने में कम समय लगता है। इसके अलावा सूखी फलियाँ (जैसे कि राजमाह, छोले आदि) को 0.5 फीसदी सोडियम बाईकार्बोनेट के घोल में 18 घंटे रखने के बाद 121 डिग्री सेल्सियस तापमान में 30 मिनटों के लिए पकाने से दालों में मौजूद, पेट में गैस बनाने वाले तत्व जैसी कि रैफीनोस और स्टैकीओज़ कम हो जाते हैं।

अंकुरण:

दालों को अंकुरण करने का तरीका बहुत आसान है और दालों का स्वाद, पाचन और पौष्टिकता बढ़ाने के लिए एक बहुत ही प्रसिद्ध तरीका है। दालों के अंकुरण के लिए 8-10 घंटों के लिए बराबर मात्रा के पानी में भिगो कर रखें जब तक कि दालें पूरा पानी सोख कर फूल नहीं जाती। अब इस भिगोई हुई दाल को मलमल के कपड़े में ढीला बांध कर किसी गर्म जगह पर रख दें। मलमल के कपड़े को सूखने न दें। 12-24घंटों में दालें अंकुरित हो जाती हैं। गर्मियों में दालों को अंकुरित होने में कम समय लगता है। अंकुरित हुई दालों में विटामिन बी ज्यादा होता है और विटामिन सी भी ज्यादा होता है। अंकुरित दालों में प्रोटीन ज्यादा पचने योग्य हो जाती है।

भूनना:

दालों को भून कर खाने का तरीका भारत में कई सालों से प्रचलित है। दालों को भूनने से इनका रंग और स्वाद और भी बढ़ जाता है। भूनने से दालों में अलग तरह की महक पैदा हो जाती है और इन में कुरकुरापन भी आ जाता है। भूने के लिए साबुत दालों को थोड़े सा पानी छिड़क के यां इसके बिना बर्तन में खाने वाले नमक या रेत में मिला कर भूना जाता है। दालों की किस्मों के हिसाब से बर्तन का तापमान 200-250 डिग्री सेल्सिअस तक रख के 2-3 मिन्टों के लिए भूना जाता है। नमक या रेत को छान कर अलग कर लिया जाता है। दालों को भुनने से इनको लंबे समय तक स्टोर करके रखा जा सकता है।

खमीरीकरण:

भोजन में कूदरती रूप से मौजूद सूक्ष्म जीव या बैक्टीरिया के माध्यम से भोजन का खमीरीकरण किया जाता है। खमीरीकरण प्रक्रिया के कारण कार्बनडाईआक्साइड बन जाती है जिस कारण खमीरी भोजन जालीदार और बुलबुलेदार होते हैं। खमीरण प्रक्रिया से तैयार किए गए भोजन पदार्थ और संरचना आम भोजन पदार्थों से अलग होती है और इनकी पौष्टिकता भी बढ़ जाती है। दाल और चावल खमीरे हुए मिश्रण भारत में बहुत इस्तेमाल किए जाते हैं। इन मिश्रण को तैयार करने के लिए दाल और चावलों को अलग-अलग 4-6 घंटों के लिए भिगो कर रखा जाता है। फिर थोड़ा सा पानी मिला कर बरीक पीस लिया जाता है। बरीक पिसे हुए मिश्रण को सारी रात खमीरण के लिए गर्म जगह पर रखा जाता है। खमीरे भोजन पदार्थ विटामिन बी और सी का एक अच्छा स्त्रोत है।

इस तरह प्रोसेसिंग की अलग-अलग तकनीकें अपना कर दालों को कई तरह के भोजन पदार्थ जैसे कि- ब्रेड, पास्ता, केक, सूप, सॉस और ग्लूटिन मुक्त प्रोडक्ट्स बनाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। इस तरह तैयार भोजन पदार्थ की पौष्टिकता में बढ़ावा करता है। इस सब के अलावा दालों की प्रोसेसिंग रोजगार में एक अच्छा बदलाव साबित हो सकती है। ज्यादा सुविधाएं उपलब्ध होने के कारण ज्यादातर प्रोसेसिंग यूनिट शहर में बनाई जा रही हैं। पर अगर इसको गाँवों में प्रचलित किया जाए तो यह गाँवों के बेरोज़गार नौजवानों के लिए अच्छी साबित होंगी ।

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