बेहद फायदेमंद और गुणकारी वृक्ष है बबूल

बहुत महंगे और खूबसूरत पौधों के मुकाबले बबूल बेहद फायदेमंद वृक्ष है । अब पंजाबी लोग घरों में बबूल लगाने की जगह और ही विदेशी वृक्ष लगा रहे हैं। संसार का शायद ही कोई ऐसा वृक्ष होगा जो बबूल के गुण रखता हो। इसलिए जितना समय पंजाबियों के घर और खेतों में बबूल थी, उतना समय ही पंजाबी हर तरह से स्वस्थ थे।

सबसे बढ़िया बात आपको बताएं पंजाब के पुराने पेड़ बब्बुल, बेरी, मल्हा, जंडी, जंड, करीर, टाहली, नीम, शहतूत, आम, जामुन, नाशपाती, अनार आदि के पत्तों, फूलों, छाल आदि से हर बीमारी का इलाज किया जा सकता है। पिछले 11 साल से हम देसी वृक्षों की खोज कर रहे हैं। इनके पत्तों, फलों, फूलों, जड़ें, छाल, गूंद आदि के बारे में हमने अनेक खेती यूनिवर्सिटी से जानकारी हासिल की और इनसे अनेक मरीजों का सफल इलाज भी किया। हम जल्दी ही इन देसी वृक्षों के बारे में छोटी सी लेकिन खोज भरपूर जानकारी वाली पुस्तक भी प्रकाशित करेंगे।

बबूल छाल में लगभग 20 प्रतिशत tannin होता है। यदि रोज़ाना खाने में tannin हो तो यह अनेक रोगों से बचाव करते हैं और रोगों को बिगड़ने भी नहीं देते। यह खून बहने से रोकते हैं, ब्लड प्रेशर और सीरम लिपिड स्तर को कम करते हैं, शराब या उल्ट या खराब खाना खाने से होने वाले लिवर नैक्रोसिस से बचाव करते हैं। यह शरीर के इम्यून रिस्पॉन्स को और भी बढ़िया बनाने में सहायक होते हैं। यह हर तरह की एलर्जी से भी लाभदायक हैं। इसलिए इसकी छाल से बनाये पाउडर या काहडे से अनेक खतरनाक रोगों से बचाव किया जा सकता है।

इसके तुक्कों में बहुत ज़्यादा पॉलीफिनोलिक कम्पाउन्ड्ज़ होते हैं। यह अल्ट्रावाईलैंट रेडिएशन और खतरनाक इन्फेक्शनज़ से बचाव करते हैं। यदि कोई व्यक्ति रोज़ाना खाने में पॉलीफिनोलिक कम्पाउन्ड्ज़ थोड़े बहुत भी लेता रहता है तो उसके किसी भी किस्म का कैंसर नहीं बनता, दिल के संबंधी रोग, शूगर, मोटापा, जल्दी बुढ़ापा आदि नहीं होते। ख़ास तौरपर ओस्टयू पोरोसिस और न्यूरो डिजेनरेटिव बीमारी तो बनती नहीं। इसी कारण तुक्कों का अचार खाते रहने वाले जट, भील, बिश्नोई, अहीर, बोरिये, गुज्जर, मीणे और बागडिये जिनका ज़्यादा लम्बा जीवनकाल होता है और ज़्यादा तंदरुस्त रहते हैं, इनमें बे-वंश भी कम होते हैं। इन लोगों की तंदरुस्ती और लंबी उम्र का राज देसी खाना, ठंडा और थोड़ा खाना और हाथ से काम करने की आदत भी है।

बबूल गूंद में गैलैक्टोज़, कैल्शियम, मैग्नीशियम, aldobio uronic acid, arabinobioses आदि तत्व होते हैं। यह तत्व शारीरिक स्वास्थ्य, मानसिक स्वास्थ्य, सेक्सुअल हेल्थ संबंधी अनेक रोगों से बचाव करते हैं। पिछले 7 साल से हम मरीजों के शरीर दर्द, हड्डी का जल्दी टूटना या जल्दी ना जुड़ना, आधा सिर दर्द, मांसपेशियों की कमज़ोरी, पेट, डौले या छाती का ढीलापन, बच्चेदानी की सूजन, शुक्राणु की कमी, बालों का कमज़ोर होना, चमड़ी दाग आदि रोगों का बबूल की गूंद के साथ सफल इलाज करने में कामयाब हुए हैं। बबूल की गूंद पानी या दूध में घोलकर या पंजीरी में डालकर खाई जा सकती है।

बबूल के फूलों और फलों की डोडियों में kaempferol-3-glucoside, iso-quercitrin और leucocyanidin आदि बहुत ही स्वस्थ फ्लेवोनॉयड्स होते हैं। यह बबूल के फूलों में से मिलने वाला Leucocyanidin अनेक महंगे फलों या ड्राई फ्रूट्स में से मिलता है। यह अमेरिकन कस्टर्ड एप्पल, अरीका नट, होर्स चेस्टनट, काजू, चैरी, ब्ल्यू मैलो, ब्लैक चैरी और चाइनीज़ डेट आदि में से मिलता है। इसके अलावा केला, मूंगफली, मक्की आदि में से भी leucoyanidin मिलता है। मतलब कि बबूल के फूलों की डोडियों से भी बहुत ही स्वस्थ तत्व मिलते हैं। यह दिल, जिगर, गुर्दे रोगों से बचाव करते हैं। गला खराब, पुरानी खांसी, बार-बार होने वाला ज़ुकाम, छाती जाम, कानों का बहना, ज़ख्म का जल्दी ना भरना आदि के लिए लाभदायक है।

बबूल छाल को पानी में उबालकर टब में डालकर ठंडा करके 5-6 मिनट में 2-3 बार इसमें बैठने पर भार पड़ना (vaginal Prolapse), गुदा दुआर बाहर आना(rectal prolapse), महिलाओं के गुप्त अंगों का ढीला पड़ना, बार-बार लिकोरिया होना आदि ठीक होता है।

हम 2008 में पहली बार एक बूढ़ी औरत को इस तरीके से पुराने भार पड़ने की तकलीफ के रोग से छुटकारा दिलाने में कामयाब हुए थे। उसके बाद हमने अनेक महिलाओं को यह तरीका बता कर ठीक किया। इसके साथ एक्सरसाइज़, सादा खाना पीना भी होता है। यह पानी हर तरह के एक्ज़ीमा से भी फायदेमंद है और साथ ही जंक फ़ूड, तली हुई सब्जियां, चाय-कॉफी आदि से भी परहेज़ रखना होता है। बार-बार मुँह का पकना, टांसिलाइटिस, दांत-दाड़ का दर्द, सूजन, मसूड़ों से रक्तस्राव, मुँह की बदबू, दांत दाड़ का गलना आदि के लिए छाल के पानी का कुल्ला, गरारे करते रहने से बहुत फायदा होता है।

बबूल के पत्तों को उबालकर छानकर दो-दो चम्मच 2-3 बार पीने से पुराने दस्त, बवासीर, संग्रहणी, अल्सरेटिव कोलाईटिस, बार-बार लेट्रिन जाना, पेट के कीड़े, पेट दर्द, अधिक माहमारी, लिकोरिया आदि से तुरंत फायदा होता है। इस पानी से सुपनदोष, धांत, शुक्राणु कमी को भी फायदा पहुँचता है।

इसी तरह बबूल के एक तुक्के को उबालकर छानकर तीन समय एक-एक चम्मच पानी पीने से बिगड़ी पुरानी बवासीर ठीक हो जाती है। इससे ज़्यादा दिनों तक चलने वाली माहमारी भी सही हो जाती है।

वैसे बबूल की दातुन करने से दांत, दाड़, मसूड़े मज़बूत होते हैं और हमेशा तंदरुस्त रहते हैं। बबूल की दातुन मुँह, गले, होंठ, जीभ, मसूड़े आदि अंग के कैंसर से भी बचाव करती है।
सब कुछ मौसमी और रीज़नल खाने की आदत डालें।

डॉ.बलराज बैंस
डॉ.करमजीत कौर बैंस
नैचरोपैथी क्लिनिक रामा कॉलोनी अकालसर रोड मोगा
9463038229

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