एंथ्रेक्स गाय, भैंस, बकरियों और भेड़ों का एक तेजी से फैलने वाला संक्रामक रोग है। यह रोग बेसिल्स एथ्रेसिस नामक जीवाणु के कारण होता है। यह मिटटी जनित संक्रमण है और आमतौर पर इसका प्रकोप मौसम परिवर्तन के बाद होता है। भारत में कुछ राज्यों में इस रोग का प्रकोप स्थानिक है। इसका संक्रमण संक्रमित पशुओं से मनुष्य में भी हो सकता है।
संक्रमण:
1.एंथ्रेक्स के स्पोर (जीवाणु) मिटटी में कई सालों तक जीवित रहते है।
2.यह आमतौर पर दूषित चारा और पानी के माध्यम से फैलता है।
3.कभी कभी यह श्वसन के माध्यम से और मक्खियों द्वारा भी होता है।
4.भेड़ों के उन और खाल में भी इसके स्पोर पाए जाते हैं।
पशुओं में लक्षण
1.शरीर के तापमान में अचानक वृद्धि
2.तेज सांस का चलना
3.गुदा, नाक, योनि से रक्तस्त्राव
4.ऐसा रक्त बाहर आने के बाद थक्का नहीं जमता
5.भूख न लगना और सुस्ती
6.अफारा
7.पेचिश यां दस्त
अधिकतर मामलों में पशुओं की अचानक या 48 घंटे में मौत हो जाती है।
मनुष्यों में लक्षण
मनुष्यों में यह 3 रूपों में पाया जाता है।
1.त्वचा रूप: इसमें त्वचा पर जल्दी न ठीक होने वाले घाव और नासूर बन जाते हैं।
2.फेफड़ों का रूप: तेज बुखार, न्यूमोनिया
3.आँतों का रूप: तेज बुखार, डायरिया
पशुओं में उपचार:
रोग का प्रारंभिक चरण में पता चल जाये तो उपचार प्रभावी है।
उपचार के लिए अपने निजी पशु चिकित्सक से संपर्क करें।
नियंत्रण:
1.रोग का प्रकोप होने पर तुरंत अपने निजी पशु चिकित्सक से संपर्क करें।
2.मरे हुए जानवरों को काटना नहीं चाहिए और न ही उनकी चमड़ी निकालनी चाहिए।
3.ऐसे जानवरों को गहरा गड्डा खोदकर दबा दें और उसमें चूना मिला दें।
4.10% कास्टिक सोडा यां फार्मेलिन यां 3% एसिटिक एसिड क उपयोग करके शेड की पूरी तरह सफाई करें।
5.भेड़ों से उन निकलते समय मास्क का प्रयोग करें।
टीकाकरण:
1.जिस जगह पर एंथ्रेक्स का अक्सर प्रकोप देखा गया है वहां टीकाकरण किया जाता है।
2.एंथ्रेक्स स्पोर टीका: गाय, भैंस, भेड़ और बकरी में त्वचा के नीचे प्रतिवर्ष 1 मिलीलीटर का इंजेक्शन दिया जाता है।
राष्ट्रीय पशु रोग जानपदिक एवं सुचना विज्ञान संस्थान
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