आजकल ज्यादातर पशुओं को कृत्रिम गर्भाधान द्वारा ही गाभिन किया जाता है पर इसकी सफलता पशुओं के हीट के लक्षण पहचानने पर ही निर्भर करती है, क्योंकि टीका भरवाने के समय इस बात का ध्यान रखना बहुत ज़रूरी है कि किस समय टीका भरवाया जा रहा है क्योंकि एक विशेष समय ही होता है पशुओं में टीका भरवाने का। यदि यह समय चला जाये या फिर टीका समय से पहले लग जाये तो पशु गाभिन नहीं होता।
हीट के लक्षण
• हीट में आए पशु की योनि में सोजिश आ जाती है और पशु बिना किसी कारण बोलना शुरू कर देता है। हीट में आने के समय दूध भी कम हो जाता है और पशु बार-बार पेशाब करता है।
• हीट में आये पशु की कमर पर यदि हाथ से थापी मारी जाये और वह बिना हिले-जुले खड़ा रहे और पूंछ को एक तरफ कर ले तो समझ लें कि टीका लगाने का सही समय आ गया है। इस समय तुरंत टीका भरवा सकते हैं।
• पशु के हीट में आने वाली तारों को कांच की सलाइड पर रखकर धूप में सुखा लें। सूरज के सामने स्लाइड को देखने पर एक विशेष किस्म का शरींह के पत्ते जैसा डिज़ाइन नज़र आता है। इसे तिहरा फरन पैटर्न कहते हैं। यदि शरींह के पत्ते जैसा डिज़ाइन नज़र आये तो यह टीका भरवाने का सही समय होता है।
• दोगली गायों जिनमें विलायती गुण 65 प्रतिशत से ज्यादा होते हैं वे हीट खत्म होने से लगभग 36-48 घंटों के बाद खून गिरा देती हैं। इस गुण से भी यह अंदाजा लगाया जा सकता है टीका सही समय पर लगा है या नहीं। यदि टीका लगने के कुछ घंटों के अंदर ही गाय खून गिरा देती है तो टीका बहुत देर बाद लगा है। यदि खून, टीका लगने से कई दिनों के बाद आता है तो टीका बहुत पहले लग गया है। दोनों हालातों में गाय के गाभिन रहने की संभावना कम होगी।
• आजकल ज्यादातर गायों को बांधकर रखा जाता है उनमें हीट की शुरूआत का पता लगाना थोड़ा मुश्किल होता है। जब तारें लेसदार हो जाती हैं और योनि में से लटकी हुई नज़र आती हैं, वह सही हीट की निशानी है। इस समय टीका भरवा सकते हैं।
• पशुओं को हीट में आने का समय, पिछला टीका भरवाने की तिथि, ब्याने की तिथि आदि का रिकॉर्ड रखना बहुत जरूरी है।
• यदि खुले स्थान की बात है तो जो गाये दूसरी गायों को अपने ऊपर चढ़ने देती है वास्तव में वही गाय सिर्फ हीट में होती है। लेकिन जो गाय ऊपर चढ़ रही है उसका पक्का पता नहीं कि वह हीट में है या नहीं। या फिर यदि कोई गाय दूसरी गाय के ऊपर चढ़ते समय तुरंत आगे को चल पड़ती है तो उसे सही हीट में नहीं गिना जाता।
• हीट की तारीख का पता हो तो हम अगली अंदाजन तिथि के समय पशु का ध्यान रख सकते हैं।
स्त्रोत: गुरू अंगद देव वैटनरी यूनिवर्सिटी, लुधियाना
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