फसल बोने से पहले मिट्टी की जांच, भूमि की उपजाऊ शक्ति जानने का सबसे अच्छा ढंग है।
मिट्टी की जांच
फसलों को खादों की सिफारिश के लिए ज़मीन की ऊपरी 6 इंच सतह के नमूने की निम्नलिखत विशेषताओं के लिए जांच की जाती है।
मिट्टी की बनावट – इससे मिट्टी के कणों के नाप का पता चलता है ज़मीन में रेतीले,गाद तथा चिकने तीन रंग के कण होते है तथा इससे ज़मीन की उपजाऊ शक्ति तथा भौतिक क्रियाओं जैसे कि ज़मीन की हवाखोरी, पानी का ज़ीर्ण, पानी के संभालने की शक्ति का पता लगता है।
ज़मीन का खारी अंग — इससे ज़मीन के तेजाबी तथा खारेपन का पता चलता है जिन ज़मीनों का खारी अंग 6.5 से कम हो वह ज़मीनें तेजाबी होती हैं तथा फसलों की अच्छी उपज लेने के लिए चूना डालना पड़ता है।
जैविक मादा — जैविक मादा के आधार पर नाइट्रोजन तथा फास्फोरस तत्व वाली खादों की मात्रा बढ़ाई या घटाई जा सकती है। ज़मीनें, जिनमें जैविक मादे की मात्रा 0.4 फीसदी से कम, 0.40 से 0.75 फीसदी से अधिक हो, को क्रमवार कम, मध्यम तथा अधिक जैवक मादा वाली ज़मीनें कहा जाता है पंजाब में अधिकतर ज़मीनों में इसकी मात्रा कम से मध्यम है।
प्राप्त होने वाला फास्फोरस – इससे ज़मीन से मिलने वाले फास्फोरस के बारे में पता चलता है। फास्फोरस के आधार पर ज़मीनों को चार श्रेणियों में बांटा जाता है। पांच किलो प्रति एकड़ तक फास्फोरस वाली ज़मीनों को कम, 5 से 9 किलो प्रति एकड़ वाली मध्यम,9 से 20 किलो प्रति एकड़ वाली ज्यादा तथा 20 किलो प्रति एकड़ से अधिक वाली ज़मीनों को बहुत ज्यादा फास्फोरस वाली ज़मीनें भी कहा जाता है बहुत ज्यादा फास्फोरस तत्व वाली ज़मीनों में फास्फोरस खाद का उपयोग 2—3 वर्ष तक छोड़ा जा सकता है उसके बाद ज़मींन की जांच के आधार पर ही फास्फोरस का प्रयोग शुरू करना चाहिए।
प्राप्त होने वाली पोटाश — मिट्टी के पोटाशियम तत्व के आधार पर जिन ज़मीनों में तत्व 55 किलो प्रति एकड़ से कम हो, को कमी वाली तथा इससे ऊपर अधिक पोटाशियम वाली ज़मीनों में बांटा जाता है। आलू और गाजरों को छोड़कर बाकी फसलों के लिए पोटाशियम की कमी वाली ज़मीनों में पोटाशियम खाद का प्रयोग न करके पैसे बचाये जा सकते हैं।
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