जुलाई महीने में मॉनसून के मौसम की शुरूआत हो जाती है और कुछ क्षेत्रों में बारिश के साथ धूल वाले तूफान भी आते हैं। ऐसे समय में गर्मी और नम मौसम के कारण पशुओं को बीमारियों से बचाया जाना चाहिए।
• कीचड़ और बाढ़ से पशुओं को बचाने के लिए पर्याप्त व्यवस्थाएं की जानी चाहिए।
• अत्याधिक बारिश की स्थितियों में पशुओं को बीमारियों से बचाएं और इस समय में उनकी डीवॉर्मिंग करना ना भूलें।
• पशुओं का मुंह खुर रोग, गलघोटू रोग, लंगड़ा बुखार,आंतों का रोग आदि से यदि टीकाकरण नहीं करवाया है तो तुरंत करवाना चाहिए।
• आंतों के रोग से बचाव के लिए प्रौढ़ भेड़ और बकरी का टीकाकरण किया जाना चाहिए।
• बछड़े/कटड़े/भेड़ के बच्चे के जन्म के बाद, नवजात शिशु को 2 घंटो के अंदर-अंदर खीस पिलायी जानी चाहिए।
• प्रसव के बाद 7—8 दिनों में दुधारू पशुओं में सूतकी बुखार होने की संभावना रहती है। इससे बचाव के लिए गर्भावस्था के दौरान पशु को धूप में रखें और गर्भावस्था के आखिरी महीने में पशु को जन्म के समय आने वाली समस्याओं जैसे जेर का ना पड़ना आदि से बचाने के लिए विटामिन ई और सेलेनियम का इजैक्शन दिया जाना चाहिए। वैकल्पिक रूप से, पशुओं को कैलशियम और फासफोरस के मिश्रण 70—100 मि.ली. या 5—10 ग्राम चूना दें।
• जानवरों को सिंचित चारा क्षेत्रों में चरने न दें, क्योंकि लंबी गर्मी के बाद, मॉनसून की शुरुआत के कारण चारा में अचानक वृद्धि होती है, इसमें जहरीले साइनाइड की उपस्थिति होती है। यह ज्वार फसल में विशेष रूप से ऐसा है। इसलिए, इन चारा फसलों की कटाई समय से पहले या जानवरों को समय से पहले खिलाया नहीं जाना चाहिए।
• बारहमासी चारे की फसल इस समय रोपित की जानी चाहिए। यह 40—50 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। पशु की संतुलित खुराक के लिए मक्का, ज्वार और बाजरा को ग्वार फली और लोबिया के साथ बोया जाना चाहिए।
• भेड़ की ऊन उतारने के 21 दिन बाद, उनके शरीर को कीटाणुशोधक में डुबोया जाना चाहिए।
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