पंजाब में लगातार मौसम बदलाव के कारण फसलों के ऊपर काफी असर देखने को मिल रहा है। पिछले कई वर्षों से लगातार सर्दियों की बढ़ती बारिश के कारण फसल में बीमारियों का हमला बढ़ता जा रहा है। इन दिनों में पीली कुंगी का लगातार हमला गेहूं की फसल में दिखाई दे रहा है। इस बीमारी जीवाणुओं के विकास और संचार के लिए 8-13° सैल्सियस तापमान अनुकूल होता है और इनके बढ़ने—फूलने के लिए 12-15° सैल्सियस तापमान पानी के बिना अनुकूल होता है। इस बीमारी के कारण गेहूं की फसल की पैदावार में 5-30% तक कमी आ सकती है।
बीमारी के लक्षण
हमले की स्थिति में गेहूं में पत्तों पर पीले रंग के धब्बे नज़र आते हैं जो पीली धारियों के रूप में भी हो सकते हैं जिन पर पीला हल्दी नुमा धूड़ा नज़र आता है और जब हम पत्ते पर हाथ लगाकर देखते हैं तो यह धूड़ा हाथों पर भी लग जाता है जो कि गेहूं पर पीली कुंगी के हमले की निशानी है। यह बीमारी पत्तों का विशेष कर झंडा पत्ते का हरा मादा खत्म कर देती है। जिससे पौधे कमज़ोर पड़ जाते हैं। तेज हवाओं से पड़ने वाली बारिश इस बीमारी को ज्यादा बढ़ाती है। रात का तापमान 7-13° सेंटीग्रेड और दिन का तापमान 15-24° सेंटीग्रेड और हवा में 85-100% नमी इस रोग के हमले और वृद्धि के लिए अनुकूल है।
इलाज —जहां कहीं भी यह निशानियां नज़र आए तो बिना किसी देरी के बालियों में ही इस बीमारी पर पी ए यू लुधियाना की तरफ से सिफारिश फंगसनाशी नेटिवो 75 डब्लयु जी (ट्राइफ्लोक्सीस्ट्रोबिन + टैबुकोनाज़ोल) 120 ग्राम या टिल्ट/शाइन/सटिल्ट/बंपर/कंपास/मार्कज़ोल 25 ई सी (प्रोपीकोनाज़ोल) 200 मि.ली. प्रति एकड़ के हिसाब से 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। यदि जरूरत पड़े तो 10—15 दिन के बाद छिड़काव दोबारा करें ताकि टीसी वाले पत्ते रोग रहित रहें और बढ़िया उपज मिल सके।
किसानों से यह अपील की जाती है कि वे अपने पीली कुंगी के नुकसान से बचने के लिए अपने खेत का लगातार सर्वेक्षण करें और जहां भी आपको इसका हमला नज़र आए तो स्प्रे करके अपने खेत को नुकसान से बचाएं। दवाइयों का प्रयोग सही समय और सही मात्रा में ही करें।
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