बोन्साई शब्द दो शब्दों के सुमेल से बनता है मतलब बोन् और साई। बॉन का मतलब ट्रे और कम गहराई वाला गमला/बर्तन और साई का मतलब पौधा लगाना होता है। कुल मिलाकर बोन्साई एक जीवित शिल्पकला है, जिसका इतिहास और शुरुआत सदियों पुरानी है। कुछ लोगों का मानना है कि प्राचीन काल दौरान वैद और ऋषि लोगों को रोगियों के इलाज के लिए जो औषधीय तैयार करने के लिए पेड़ और पौधों के हिस्से चाहिए होते थे, उन्हें इकट्ठे करने के लिए जंगलों में जाना पड़ता था और बार–बार जंगलों में भटकने से उन्होनें ज़रूरी पौधों के बीज और कलमें आदि को गमलों में लगाना शुरू कर दिया था और थीरे–थीरे यह तरीका बोन्साई ढंग में तब्दील हो गया।
स्पष्ट शब्दों में यदि बात करें तो बोन्साई का मतलब बड़े–बड़े पीपल, बोहड़, नींम, इमली आदि जैसे पौधों को छोटे–छोटे गमलों में उगाया जाता है।
गमलों का चयन: बोन्साई के लिए आम गमले का प्रयोग नहीं किया जाता। खासतौर पर उनकी गहराई बहुत ज़्यादा नहीं होती, परन्तु वह गोलाकार, अंडाकार, चारकोने, 6 किनारे आदि किसी भी तरह के दिखाई देने वाले हो सकते हैं।
पौधे का चयन: बोन्साई तैयार करने के लिए पौधे का चयन सबसे अहम ज़रूरी है, क्योंकि हर पौधे का विकास और दिखावट अलग ही होती है और हर पौधे को बोन्साई रूप दिया भी नहीं जा सकता हमरे वातावरण हालात में जिन पौधों को इस काम के लिए प्रयोग किया जाता है– पीपल, बोहड़, पिलकन, चिलकन, शहतूत, चील्ह, आड़ू, अनार, नारंगी, चाइना रोज़, विसटीरिया, जूनीपर्स, करोंदा, नींम, आम, बोगनविलिया, अढ़ीनियम, बोतलबुर्श आदि मुख्य रूप में है।
पौधे लगाना: गमलों में सिर्फ मिट्टी ही नहीं डाली जाती, गमले के बीच के छेद ढकने के समय नीचे की तह बहुत बारीक, कंकर पत्थर आदि की होनी चाहिए और उसके बाद मिट्टी, गली हुई गोबर की खाद आदि का मिश्रण तैयार करने के समय पौधा लगाया जाता है।
पौधे लगाने के बाद ही असल का शुरू होता है कि उसकी कांट–छांट समय पर सही तरीके से करनी चाहिए। कुछ समय के बाद जड़ों का गुच्छा बन जाता है, फिर री–पोटिंग की ज़रूरत होती है मतलब यह है कि पौधे को गमले में से बाहर निकालकर उसकी अतिरिक्त कड़ों की कांट–छांट की जाती है। खाद का भी खास ध्यान रखना चाहिए ताकि वृद्धि सही तरीके से हो। पौधे को खूबसूरत और अनोखा रूप देने के लिए तारों की लपेट की जाती है। जिसके लिए तांबे की तार या एल्युमीनियम की तार का प्रयोग किया जाता है। सभी कामों को सही रूप में करने के लिए अनेक तरह के उपकरणों की ज़रूरत पड़ती है जो मार्किट में से आसानी से मिल जाते है। गर्मी और सर्दी की ऋतु के हिसाब को देखते ही पानी लगाया जाता है।
कृषि और पशुपालन के बारे में अधिक जानकारी के लिए अपनी खेती एप्प डाउनलोड करें - एंड्राइड, आईफ़ोन