क्या है बोन्साई कला?

बोन्साई शब्द दो शब्दों के मेल से बनता है, बोन् और साई। बोन् का मतलब है ट्रे या कम गहराई वाला बर्तन और साई का मतलब पौधा लगाना होता है। कुल मिलाकर बोन्साई एक जीवित शिल्पकला है, जिसका इतिहास और शुरूआत सदियों पुरानी है। कुछ लोगों का मानना तो यह है कि प्राचीन काल के दौरान वैद्य और ऋषि लोगों को रोगियों के इलाज के लिए जो औषधियां तैयार करने के लिए वृक्ष— पौधों के हिस्से चाहिए होते थे, उन्हें एकत्र करने के लिए जंगल में जाना पड़ता था और बार बार जंगर में भटकने से उन्हें आवश्यक पौधों के बीज और कलमें आदि गमलों में लगाना शुरू कर दिया था और धीरे—धीरे यह ढंग तरीका बोन्साई कला में परिवर्तित हो गया।

इतिहासकारों का मानना है कि बोन्साई कला की शुरूआत पुरातन एशियाई सभ्याचार में से हुई। चीन देश में से इसकी उपज मानी जाती है और इसका विकास जापान में हुआ जो समय के चलते पूरे विश्व में मकबूल हो गया। इस कला की मकबूलियत में बुद्ध धर्म के लोगों और मंगोल जाति के लोगों ने भी अपना योगदान दिया। बोन्साई कला में तैयार किया विश्व का सबसे पुराना पौधा जापान के टोक्यो शहर में मौजूद है और उसकी उम्र तकरीबन 500 वर्ष से भी अधिक मानी जाती है और इसे जापानी लोगों के लिए राष्ट्रीय खजाना समझा जाता है। भारत में इंडियन बोन्साई सोसाइटी सन 1972 में बोम्बे यानि मुंबई शहर में स्थापित की गई। सन् 1990 के दौरान भारत में पहला बोन्साई गार्डन कमला नेहरू पार्क, मुंबई में बनाया गया।

सरल शब्दों में यदि हम बात करें तो बोन्साई का मतलब बड़े—बड़े पीपल, बरगद, नीम, इमली आदि जैसे पौधों को छोटे गमलों में उगाया जाता है। पर यह सिर्फ कला तक सीमित ना होकर तकनीकी और वैज्ञानिक काम भी है। किसी भी पीपल, बरगद जैसे पौधे को कम गहराई वाले गमले में लगाने के लिए बोन्साई तैयार नहीं हो जाती। सबसे पहले तो यह बात साफ होनी चाहिए कि जो पौधा तैयार करना है, उसे आकार कौन सा देना है। यह काम एक—दो वर्ष तक सीमित नहीं होता। इस बेहतरीन बोन्साई तैयार करने के लिए वर्षों की मेहनत लगती है। इसलिए, हमें यह पता होना चाहिए कि वर्षों की मेहनत के उपरांत हमारे बनाए बोन्साई का आकार कैसा होगा। तकनीकी तौर पर यह स्टाइल मुख्य रूप में छ—सात तरह के होते हैं, जिनके बारे में विस्तार में चर्चा एक लेख में करनी मुमकिन नहीं है। परंतु फिर भी जो प्राथमिक बातें या तकनीकी पक्षों का ध्यान रखा जाना चाहिए, वे इस प्रकार हैं:

गमलों का चयन — बोन्साई के लिए आम गमले नहीं प्रयोग किए जाते। विशेष कर उनकी गहराई बहुत ज्यादा नहीं होती, परंतु वे गोलाकार, अंडाकार, चौकन्ने, छकन्ने आदि किसी भी दिखावट वाले हो सकते हैं।

पौधों का चयन — बोन्साई तैयार करने के लिए पौधे का चयन सबसे अहम हिस्सा है क्योंकि हर पौधे का विकास और दिखावट अलग होती है और हर पौधे को बोन्साई रूप नहीं दिया जा सकता।
हमारी वातावरण स्थितियों में जिन पौधों का प्रयोग किया जा सकता होता है, वह है — पीपल, बरगद, पिलकन,चिलकन, शहतूत, चील, आड़ू, अनार, नारंगी, चाईना रोज़, विस्टीरिया, जूनीपरस, करौंदा, नीम, आम, बोगनविलीया, अडीनीयम, बोतलब्रश आदि मुख्य रूप में हैं।

पौधे लगाना — गमलों में सिर्फ मिट्टी ही नहीं डाली जाती बल्कि गमले में मौजूद छेद को ढकने के उपरांत निचली सतह बहुत बारीक कंकड़ पत्थर आदि की होनी चाहिए और उसके बाद मिट्टी गली हुई गोबर की खाद आदि का मिश्रण तैयार करने के उपरांत ही पौधा लगाया जाता है।

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पौधे लगाने के बाद ही असली काम शुरू होता है कि उसकी कांट—छांट समय से सही ढंग से करनी चाहिए। कुछ समय बाद जड़ों का गुच्छा बन जाता है, फिर री—पोटिंग की जरूरत पड़ती है और भाव यह कि पौधे को गमले में से बाहर निकालकर उसकी अतिरिक्त जड़ों की कांट —छांट की जाती है। खाद का भी विशेष ध्यान रखना चाहिए ताकि वृद्धि ठीक तरीके से हो। पौधे को खूबसूरत और विलक्षण दिखावट देने के लिए वायरिंग यानि तारों की लपेट की जाती है, जिसके लिए तांबे या एल्युमीनियम की तार का प्रयोग किया जाता है। सभी कामों को सही रूप में करने के लिए अनेकों तरह के औज़ारों की जरूरत पड़ती है, जो मार्केट में आसानी से मिल जाते हैं। गर्मी—शरद ऋतु के हिसाब को देखते ही पानी लगाया जाता है। सभी काम सही ढंग से करने के बाद यह बात भी बहुत अहम है कि पौधों को प्रदर्शित किस तरह किया जाए ताकि आपका और हर देखने वाले का मन मोह ले। बोन्साई बनाना बहुत कठिन काम नहीं है। पर सब्र और मेहनत इसकी मुख्य ज़रूरतें हैं या फिर आप मोटी रक्म खर्च करके बने बनाए बोन्साई बाज़ार यानि बड़ी नर्सरियों में से खरीदकर अपनी इच्छा पूरी कर सकते हैं।

डॉ. बलविंदर सिंह लक्खेवाली
9814239041

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