सरसों रबी की एक प्रमुख फसल है। इसकी बिजाई से लेकर कटाई तक कई बिमारियों का हमला होता है, यदि इन बिमारियों की सही समय पर रोकथाम ना की जाये तो यह फसल की पैदावार को कम कर देती है, इन बिमारियों की आमद के बारे में सही समय पर जानकारी और प्रबंध करने के साथ पूरी उपज प्राप्त की जा सकती है।
झुलस रोग: सरसों की कम उपज होने का एक मुख्य कारण झुलस रोग होता है। यह उपज में 30 -40% तक कमी करता है, यह तेज़ी से हवा में फैलता है। इसकी शुरुआत दिसंबर महीने तक होती है पर फरवरी–मार्च में बहुत अधिक बढ़ जाता है। इसकी शुरुआत नीचे वाली पत्तियां जहां पूरा दिन छाया और नमी रहती है पर छोटे–छोटे भूरे काले धब्बे के रूप में होती है। यह धब्बे बड़े हो जाते हैं और इन पर काले रंग के गोल आकार के धब्बे बन जाते हैं जो कि बीमारी के लक्षण होते हैं।
रोकथाम: इसकी रोकथाम के लिए समय पर बिजाई करें और खाद का सिफारिश मात्रा से अधिक प्रयोग न करें। 25 दिन के बाद पौधों में फासला बनाएं, पौधों में फासला 10 से 15 सेंटीमीटर से कम न हो, क्योंकि घनी फसल पर बीमारी का हमला अधिक होता है। फसल को अधिक पानी न दें, फसल की कटाई के बाद अपशिष्ट पदार्थ को खत्म कर देना चाहिए क्योंकि इसमें बीमारी के कण होते हैं जो कि अगले साल बीमारी फैलाने का काम करते हैं।
सफेद कुंगी: यह बीमारी केवल राया किस्म पर हमला करती है और उपज में 17 -37% तक कमी कर सकती है। इस बीमारी का हमला ठंडे और नमी वाले मौसम में होता है। यह बीमारी बीज और ज़मीन से फैलती है। इस बीमारी के कण ज़मीन और अपशिष्ट पदार्थ में पड़े रहते हैं जो उचित मौसम आने पर निकलना शुरू हो जाते हैं। यह बीमारी भी दिसंबर–जनवरी में ही शुरू हो जाती है, यदि सर्दी पहले शुरू हो जाए तो यह बीमारी दिसंबर में शुरू हो जाती है। इसकी शुरुआत पत्तों के नीचे की तरफ छोटे–छोटे सफेद रंग के दाने के रूप में होती है जिसके कारण यह अधिकतर दिखाई नहीं देते। धीरे–धीरे बीमारी पौधों के ऊपरी भाग तक पहुंच जाती है, फूल वाली टहनियां फूलकर मुड़ जाती हैं और सींग की तरह दिखाई देती है और फली नहीं बनती।
रोकथाम: इस बीमारी की रोकथाम के लिए मेटालैक्सल एम 4% + मैनकोज़ेब 64% के तीन छिड़काव 250 ग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से 100 लीटर में घोल कर बिजाई के 60 और 80 दिन बाद करें। जरुरत पड़ने पर 20 दिन बाद यह छिड़काव दोबारा किया जा सकता है। इस छिड़काव से झुलस रोग की भी कुछ हद तक रोकथाम हो जाती है। इसके अलावा फसल की कटाई के बाद अपशिष्ट पदार्थ को खत्म कर दें ताकि यह अगले साल बीमारी का कारण ना बन सके।
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