बटेर पालन एक लाभदायक व्यवसाय है। कई स्थानों, विशेष कर बड़े शहरों के नज़दीक कई किसानों ने बटेर पालन का व्यवसाय शुरू किया है। यह मुर्गी पालन से मिलता जुलता काम ही है। बटेर पालन से जुड़ी कुछ आम जानकारी आपसे शेयर कर रहे हैं।
1.यह बहुत छोटा पक्षी होने के कारण इस काम को शुरू करने के लिए कम जगह की जरूरत होती है। उदाहरण के तौर पर 5-6 पक्षियों के लिए 1 वर्ग फीट जगह की आवश्यकता होती है।
2.खुराक की खप्त भी कम होती है, सिर्फ 20-25 ग्राम प्रति पक्षी रोज़ाना।
3.बटेर के अंडे और मांस में अमीनो अम्ल, विटामिन, चर्बी और धातु आदि पदार्थ उपलब्ध रहते हैं।
4.बटेर पालन में, 5 सप्ताह का पक्षी मीट के लिए तैयार हो जाता है और 6-7 सप्ताह में अंडे देना शुरू कर देता है।
5.मुर्गियों की बजाय बटेरों में छूत की बीमारियां कम होती हैं। बीमारियों की रोकथाम के लिए मुर्गी पालन की तरह इनमें किसी प्रकार का टीका लगाने की जरूरत नहीं है।
6.बटेर हर वर्ष तीन से चार पीढ़ियों को जन्म दे सकने की क्षमता रखती है।
7.इसका मीट मुर्गे से काफी अधिक स्वाद और पोष्टिक होता है। हेचरी में 35 से 40 दिनों में बटेरें खाने योग्य हो जाती हैं। एक अंडा पांच रूपये में बिकता है।
जापानी बटेर और इसे पालने की सिखलाई चंडीगढ़ के केंद्रीय मुर्गी पालन संस्था (Central Poultry Development Organization (Northern Region) की तरफ से करवायी जाती है। अन्य जानकारी के लिए वैबसाइट http://cpdonrchd.gov.in पर जाकर इसकी सिखलाई और ट्रेनिंग के बारे में पता कर सकते हैं।
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