मिट्टी की उर्वरा शक्ति में वृद्धि हेतु पौधों के हरे वानस्पतिक को उसी खेत में उगाकर या दूसरे स्थान से लाकर खेत में मिला देने की क्रिया को हरी खाद देना कहते है।
हरी खाद प्रयोग करने की विधियां
• उसी खेत में उगाई जाने वाली हरी खादः जिस खेत में खाद देनी होती हैं, उसी खेत में फसल उगाकर उसे मिट्टी पलटने वाले हल से जोतकर मिट्टी में मिलाकर किया जाता है। इस विधि से हरी खाद तैयार करने के लिए सनई, ढैंचा, ग्वार,मूंग, उर्द आदि फसलें उगाई जाती हैं।
• खेत में दूर उगाई जाने वाली हरी खादः जब फसलें अन्य दूसरे खेतों में उगाई जाती हैं और वहां से काटकर जिस खेत में हरी खाद देना होता है, उसमें मिट्टी पलटने वाले हल से जोतकर दबा देते हैं। इस विधि में जंगलों या अन्य स्थान पर उगे पेड़ पौधों एवं झाड़ियों की पत्तियों टहनियों आदि को खेत में मिला दिया जाता हैं।
• हरी खाद हेतु प्रयोग की जाने वाली फसलें सनई, ढैंचा,मूंग, उर्द, मोठ, ज्वार, लोबिया, जंगली, नील बरसीम एवं सैंजी आदि।
हरी खाद से लाभ
• हरी खाद से मृदा में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा से भौतिक दशा में सुधार होता है।
• नाइट्रोजन की वृद्धि हरी खाद के लिए प्रयोग की गई दलहनी फसलों की जड़ों में ग्रन्थियां होती है। जो नत्रजन का स्थिरीकरण करती हैं। फलस्वरूप नत्रजन की मात्रा में वृद्धि होती है। एक अनुमान लगाया गया है कि ढैंचा को हरी खाद के रूप में प्रयोग करने से प्रति हेक्टेयर 60 किग्रा० नाइट्रोजन की बचत होती है तथा मृदा के भौतिक रासायनिक तथा जैविक गुणों में वृद्धि होती है, जो टिकाऊ खेती के लिए आवश्यक है।
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